नवरात्र विशेष:मनोकामना पूरी करती हैं माँ बनैलिया देवी

नवरात्र विशेष:मनोकामना पूरी करती हैं माँ बनैलिया देवी

मनोकामना पूरी करती हैं माँ बनैलिया देवी

संवाददाता.विजय चौरसिया

नवरात्र विशेष:मनोकामना पूरी करती हैं माँ बनैलिया देवी
मां बनैलिया देवी

आई एन न्यूज ब्यूरो नौतनवा : नवरात्र के पहले दिन आज नौतनवां के देवी मंदिरों में भी भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी हुई है। नवरात्र हर्ष उल्लास और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला त्यौहार है। शारदीय नवरात्र के पहले दिन दुर्गा की पहली शक्ति मां शैलपुत्री की आराधना का विधान है।

नवरात्र विशेष:मनोकामना पूरी करती हैं माँ बनैलिया देवी

पहले नवरात्र मां शैलपुत्री की जाती है पूजा
मां शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा करने से भक्तों पर कृपा अवश्य होती है। नवरात्र के इन दिनों आराधना करते समय आप कुछ बातों का ध्यान रखते हुए जीवन के सभी संकटों को दूर करके अपने जीवन को अपार खुशियों से भर सकते हैं।

मंदिरों में सुबह से ही लगा भक्तों का तांता 
वहीं नौतनवा की माँ बनैलिया(समया माता) देवी समेत पुरानी नौतनवा स्तिथ माँ काली देवी मन्दिर में सुबह से ही भक्तों का तांता लगा हुआ है और लोग देवी मां के दर्शन-पूजन कर उनसे अपनी कामनाएं पूरी होने का आशीर्वाद ले रहे हैं। नवरात्र के पहले दिन माँ बनैलिया देवी मंदिर में शैलपुत्री रूप में मां का श्रृंगार किया गया है। देवी मां अपने इस स्वरुप में भक्तों को दर्शन देते हुए उनका कल्याण करती हैं।

सुरक्षा के किए कड़े इंतजाम 
नवरात्र पर देवी मंदिरों को ख़ूबसूरती से सजाया गया है तो साथ ही सुरक्षा के भी कड़े इंतजाम किए गए हैं। माँ बनैलिया देवी मंदिर में शैलपुत्री स्वरुप में मां की भव्य आरती कर देर रात ही मंदिर के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए गए। आरती के वक्त मौजूद श्रद्धालुओं ने जयकारे लगाते हुए देवी गीत भी गाए। नवरात्र के पहले दिन ज़्यादातर श्रद्धालु व्रत रखे हुए हैं।

 

माँ बनैलिया देवी मन्दिर का परिचय

पूर्वी उत्तर प्रदेश के नेपाल सीमा को जोड़ने वाला नगर नौतनवा में वन देवी अर्थात मां बनैलिया के नाम से विख्यात मंदिर स्थित है। मंदिर के इतिहास के सम्बंध में बताया जाता है कि अज्ञात वास के दौरान राजा विराट के भवन से लौटते समय पाण्डवों ने मां वन शक्ति की यहां पर अराधना किया था। जिससे प्रसन्न होकर मां ने पिण्डी स्वरूप में पाण्डवों को दर्शन दिया। कालांतर में मां की पिण्डी खेतों के बीच समाहित हो गई। एक दिन खेत जोत रहे किसान केदार मिश्र को स्वप्न में मां ने कहा कि यहां पर मेरी पिण्डी खोजकर मेरे मंदिर का निर्माण करो। इसके बाद केदार मिश्र ने सन 1888 में यहां पर एक छोटे से मंदिर का निर्माण कराया। जो आज विशालकाय मंदिर के रूप में स्थापित हो चुका है। जिसकी स्थापना 20 जनवरी 1991 को विधि पूर्वक हुई। प्रतिवर्ष इस दिन को वार्षिकोत्सव के रूप में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यहां पर आने वाले हर भक्त की इच्छा मां पूरा करती है। चूंकि मां को हाथी बहुत पसंद है, इसलिए इच्छा पूरी होने पर श्रद्धालु यहां पर हाथी की मूर्ति चढ़ाते हैं।

मंदिर का वास्तु

मंदिर का निर्माण वृताकार अरघा नुमा संरचना है, जिसके अंदर मां के नौ स्वरूपों को स्थापित किया गया है। केन्द्र में मां बनैलिया की भव्य प्रतिमा शोभायमान है। मंदिर वर्ताकार होने के कारण मां का परिक्रमा मंदिर के अंदर ही जाती है।

कैसे पहुंचे

माँ के मंदिर पहुंचने के लिए रेल एवं सड़क दोनो मार्गों से साधन उपलब्ध है। गोरखपुर से चलकर नौतनवा आने पर रिक्शा एवं आटो की मदद से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित मंदिर पर आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां पर देश के कोने-कोने यात्री आते है वही 5 किलो मीटर दूर पर स्तिथ मित्र राष्ट्र नेपाल से भी भारी संख्या में श्रद्धालु आते रहते हैं। मंदिर परिसर में तीर्थ यात्रियों के रात्रि भोजन,निवास की व्यवस्था भी है । 

 

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