……जहां रावण जलाया नहीं, मारा जाता है

......जहां रावण जलाया नहीं, मारा जाता है

......जहां रावण जलाया नहीं, मारा जाता है

…..जहां रावण जलाया नहीं, मारा जाता है

आई एन न्यूज़ डेस्क नई दिल्लीःविजयदशमी पर बुराई के प्रतीक रावण के पुतले का दहन तो देशभर में किया जाता है लेकिन राजस्थान के सीकर जिले में रावण का अंत करने की अलग ही प्रथा है। यहां न रावण का पुतला बनाया जाता है और न ही उसका दहन किया जाता है, बल्कि सीकर जिले के इस में रावण बने व्यक्ति का काल्पनिक वध किया जाता है। फिर इसकी शवयात्रा गांव भर में निकाली जाती है। 
सीकर जिले के दांतारामगढ़ के बाय गांव की पहचान दशहरे मेले के लिए देश भर में है। दक्षिण भारतीय शैली में होने वाले इस मेले को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते है। मेले की विशेषता यह है कि विजयदशमी के दिन राम रावण की सेना के बीच युद्ध होता है। इसमें बुराई के प्रतीक रावण का वध किया जाता है।
रावण की मृत्यृ के बाद शोभायात्रा निकाल कर विजय का जश्न मनाया जाता है। शोभायात्रा भगवान लक्ष्मीनाथ मंदिर पहुंच कर संपंन होती है। यहां भगवान की आरती की जाती है और नाच-गाकर उत्सव मनाया जाता है। आयोजन समिति के मंत्री नवरंग सहाय भारतीय बताते है कि मेले में करीब 50 हजार से ज्यादा लोग शामिल होते है।
मंदिर के पुजारी रामावतार पाराशर के अनुसार मेले की शुरुआत करीब 162 साल पहले हुई थी। अंग्रेजों ने गांव वालों पर कर लगा दिया था। इसके विरोध में गावंवासी एकजुट हो गये ओर अनशन-आंदोलन शुरू कर दिया। गांव वालों के अनशन के आगे अंग्रेजों को झुकना पड़ा और कर को हटाया गया। इस आंदोलन में जीत के उपलक्ष्य में विजयादशमी मेला शुरू किया गया जो अनवरत जारी है।

उन्होने बताया कि काल्पनिक युद्ध में करीब दो सौ लोग शामिल होते है। इसमें सभी जाति धर्म के लोग खुले दिल से सहयोग करते है। पाराशर के अनुसार बाय का दशहरा मेला कौमी एकता और सछ्वाव की मिसाल है। मेले में गांव के मुस्लिम लोग भी सक्रिय भागीदारी निभाते है। वे आयोजन की व्यवस्था में हर तरह से खुल कर सहयोग करते है।

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