मुद्दों की सरोकारिता से विचलित हुई सीमावर्ती क्षेत्र की पत्रकारिता 

मुद्दों की सरोकारिता से विचलित हुई सीमावर्ती क्षेत्र की पत्रकारिता 
मुद्दों की सरोकारिता से विचलित हुई सीमावर्ती क्षेत्र की पत्रकारिता 
मुद्दों की सरोकारिता से विचलित हुई सीमावर्ती क्षेत्र की पत्रकारिता 
संवाददाता—धर्मेंद्र चौधरी
आई एन न्यूज ब्यूरो  :: भारत-नेपाल नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र में कई ऐसी चीजें पांव पसार रही हैं, जिनके दूरगामी परिणाम राष्ट्र हित के साथ-साथ सामाजिक मनोव्यथा के लिये अहितकारी हो सकते हैं। ,,तल्ख़ियत ही तल्ख़ियत जैसे महौल हैं। कुंठा ही कुंठा है। राजनैतिक होड़, व्यापारिक होड़, नाम की होड़, जैसे-तैसे सम्मान की होड़, बनतूपन की होड़,,,होड़ ही होड़ है। किसके लिये? ,,क्या कुछ़ ऐसा हो गया कि हमारे समाज से आदर्श परिवार व आदर्श विचारधाराएं मरणासन्न पर हैं।
लुंज पुंज हो रही खेती किसानी, शिक्षा व स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के नाम पर हो रहे सुनियोजित खिलवाड़ की निगरानी कौन करे। वो भी ऐसे स्थान पर जहां से मात्र दस गज़ की दूरी पर हमारे रोट़ी-बेटी वाला समाज़ व देश बसता है।
 नौकरशाह अपनी नौकरी बज़ाने तक सीमित हैं, जनता के अगुआ (नेता) अपने वोट बैंक और ठेका-पट्टा से धन अर्जन के इर्द-गिर्द से हो गये हैं, स्कूलों के मस्साब भी स्लैबस पूरा करने को ही अध्यपाकगिरी समझने लगे है, छ़ात्र भी पढ़ाई- लिखाई को नौकरी से जोड़ने लगे हैं, अभिभावक भी इसी को अपनी खुशी का शीर्ष लब़रेजपन मानने लगें हैं कि उनका पुत्र या पुत्री प्रथम श्रेणी डिग्री धारक हैं।,,,
 यानी सब कुछ़ ठ़ीक है, आदर्श जैसा ही है।
  ,,,अब जबकि सब कुछ़ आदर्श जैसा ही है। तो यह भी माना जाना चाहिये कि सामाजिक सरोकार से जुड़ी वास्तवित विसंगतियां भी उजागर होनी चाहिये। यहां समाज को पत्रकार की तलब लगती है। लोग तलाशतें भी हैं।
,,फला अख़बार का पत्रकार,,ढ़ेमाका न्यूज़ चैनल वाला पत्रकार ,,वो पत्रकार ,,ये पत्रकार,,छ़ोटा पत्रकार ,,बड़ा पत्रकार । ऐसा कि जैसे कि पत्रकार एक न्यायविद् की तरह काम आ ही जायेगा।
  मगर अधिकतर कथित पत्रकार तो सामाजिक सरोकार से कोसों दूर प्रतीत हैं। ब्रेकिंग व एक्सक्लुसिव के चक्कर में मस्त। नौकरशाहों से सेकहैंड़ और सफेदपोशों की कठपुतली बने। ,,समाज का एक बड़ा वर्ग अब “दलाल” तक संबोधित करने लगा है।
विडंबना देखिये राजाराम मोहन राय, मुंशी प्रेमचंद, महात्मागांधी, जवाहरलाल नेहरु, दुष्यंत, भारतेंदु हरिश्चंद, रामधारी सिंह, सुमित्रा नंदन पंत ,,,,जैसे कलम के वीरों और कबीर, रहीम, तुलसी व मीरा के बोलों पर उपजी पत्रकारिता आज़ अपने पतन के शीर्ष पर आ खड़ी हुई है।
शायद यह पत्रकारिता स्वरुप का ही जिम्मा रहा कि रोट़ी-बेटी के रिश्ते वाले हमारे नेपाल में अब “पराये नेपाल” की भावना पनपने लगी है।  होना स्वाभाविक है, क्योंकि जब भी कोई वर्ग अपने हिस्से की सरोकारिता से अलग-थलग होता है, तो उस वर्ग से अलग वर्ग उन पर अंगुली उठ़ाता ही है। ,,बस जरुरत है, अपने हिस्से का सरोकार जगाने की।

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