नेपाल चुनाव परिणामों से खिल उठ़ीं ड्रैगन की बांछ़े

नेपाल चुनाव परिणामों से खिल उठ़ीं ड्रैगन की बांछ़े

नेपाल चुनाव परिणामों से खिल उठ़ीं ड्रैगन की बांछ़े

नेपाल चुनाव परिणामों से खिल उठ़ीं ड्रैगन की बांछ़े

आईएनन्यूज ( धर्मेंद्र चौधरी की रिपोर्ट)

अपने पहले संवैधानिक राष्ट्र के रुप में नेपाल के प्रतिनिधि सभा व प्रदेश सभा के चुनाव में वाम दलों की धमाकेदार जीत हुई। इस सफलता ने निश्चित रुप से चीन की बांछ़े खिला दी हैं।
मात्र सतरह से अठारह वर्ष पूर्व नेपाल की सियासत के अस्तित्व में आये वाम दलों की यह सफलता निश्चित रुप से सराहनीय है। वहीं दूसरी तरफ सन् १९५० से नेपाल में सियासत कर रही नेपाली कांग्रेस का तीसरे पायदान पर रहना, उनकी विफलता को दर्शा रही है।
केपी ओली शर्मा का प्रधानमंत्री मंत्री बनना लगभग तय माना जा रहा है। वहीं वाम विचारधारा के पुष्प कमल दहाल उर्फ प्रचंड़ नेपाली विपक्ष का प्रमुख चेहरा बनने को लगभग तैयार हैं।
चीन क्यों न मुस्कराये? क्योंकि उनके तरफ से आयी “मार्क्स व लेनिन” के विचारों पर चलने वाली राजनैतिक पार्टियां आज नेपाल के सत्ता पर भी काबिज़ हैं, और प्रमुख विपक्षी दल के रुप में भी है।
नेपाल के चुनाव परिणाम चीन के लिये राहत वाले, तो भारत के दक्षिणपंथी भाजपा सरकार के लिये मनन वाले हैं। बात साम्राज्यवाद के इर्द-गिर्द आ सकती है। वाम बनाम दक्षिण पंथ की होड़ का मजा लेने का नेपाल के पास भरपूर अवसर है। जैसा कि पहले से चलता आया है।
अब नेपाल अपने सात प्रदेशों के नये रुप व संविधान के छ़ाये में अपने नव राष्ट्र स्वरुप के साथ विश्व पटल पर परिचय को तैयार है। परिचय किस नीति से करेगा? यह तो वक्त बतायेगा। फिलहाल तो ड्रैगन की बांछ़े खिली हैं।

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