तस्करी के दलदल में समा रहा सीमावर्ती युवा वर्ग
तस्करी के दलदल में समा रहा सीमावर्ती युवा वर्ग
आईएनन्यूज, नौतनवा से धर्मेंद्र चौधरी की रिपोर्ट:
भारत-नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र में युवा वर्ग का बाहुल्य विचलित होता सा प्रतीत हो रहा है। बेरोजगारी के कारण या तो युवा वर्ग पलायन कर रहा है, या फिर वह तस्करी के दलदल में समा रहा है।
सबसे गंभीर हालत सीमा सटे भारतीय गांवों की है।
भगवानपुर, श्यामकाट, फरेंदी तिवारी, केवटलिया, शेषफरेंदा, खनुआ, हरदीडाली, सुंड़ी, बैरियहवा, मुड़िला व चंड़ीथान गांव में मौजूद करीब चालीस फीसद युवा तस्करी में ही अपना भविष्य तलाशनें में जी-जान से जुट़े हैं। यह समस्या जहां सीमावर्ती समाज के लिये एक बीमारी के समान है, वहीं तमाम विभागों के लिये चुनौती है। मगर इसमें सुधार के लिये कहीं से भी कोई कदम उठ़ता नहीं दिख रहा है।
कुछ़ वर्ष पूर्व एसएसबी ने तस्करी को रोकने के लिये जागरुकता अभियान चलाया तो था। मगर सीमाक्षेत्र में रोजगार की बढ़ती समस्या के आगे एसएसबी का जागरुकता अभियान मात्र खानापूर्ति बन कर रह गया।
आख़िर ये कुप्रथा तेजी से पांव क्यों पसार रही है। इसके प्रमुख कारण की टोह ली जाय तो वे ये हैं–
१- सीमावर्ती क्षेत्र में किसी भी उद्योग धंधे का न होना
२- नौतनवा की गिट्टी-बालू मंड़ी बंद होना, क्योंकि इस मंड़ी में करीब एक लाख लोगों को रोजगार मिला था, जो अब बेरोजगार हैं।
३- शिक्षा की केवल खानापूर्ति करना
४- क्षेत्र में गरीब व मध्यमवर्गीय परिवारों की अधिकता।
बता दें कि सामान्य चीजों (खाद्यान्न, कास्मेटिक सामान व उर्वरक) की तस्करी के अलावा नशीले पदार्थों की तस्करी व आईसीएनसी हवाला कारोबार में भी आये दिन युवाओं का पकड़े जाना। एक पनप रही आपराधिक प्रवित्ति के रुप को दर्शा रही है। जिसकी रोकथाम के लिये समाज, जनप्रतिनिधि व प्रशासन सभी को मनन की जरुरत है।
क्योंकि भारत-नेपाल जैसी नाजुक संबधों वाली सीमा के आसपास का युवा आपराधिक पथ की ओर अग्रसर है। यह खतरनाक और गंभीर है।