क्या “बनरसिहा कला” ही है गौतम बुद्ध का ननिहाल?
क्या “बनरसिहा कला” ही है गौतम बुद्ध का ननिहाल?
आईएनन्यूज से धर्मेंद्र चौधरी की विशेष रिपोर्ट:
भगवान बुद्ध की धरती के नाम से संबोधित किये जाने वाली नेपाल व भारत की तराई की धरती अपने आप में कई इतिहास समेट़े हुए हैं। कुछ़ स्पष्ट से कुछ़ अस्पष्ट से। इसी अस्पष्ता को स्पष्ट बनाने में जहां पुरातात्विक विभाग लगा है, वहीं कई संगठन भी ऐतिहासिक तत्थ्यों को खंगाल अपना जोर व प्रयास लगाये हुये हैं।
भगवान बुद्ध के ननिहाल “देवदह” की खोज़ भी उसी अस्पष्ता का एक उदाहरण है। नौतनवा कस्बे से महज़ २५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित “बनरसिहा कला” गांव “भगवान बुद्ध के ननिहाल” होने का प्रबल दावेदार माना जा रहा है। इसकी पुष्टि गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राध्यापक व इतिहासकार सी.ड़ी. चटर्जी ने अपने कुछ़ लेख़ों में की है।
मगर दो दावे और हैं, जो अपने आपको को “भगवान बुद्ध का ननिहाल” स्थल के रुप में हैं। एक है उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में “टीनिच” नामक स्थान के पास, और दूसरा है नेपाल का “रुमिनदेई” नामक स्थान। सही कौन है, यह स्पष्ट़ नहीं है। मगर दावे सबके मजबूत हैं।
अब इसको जानिये, कि खोज़ किसकी चल रही है?
“देवदह” शाक्य राजाओं की राजधानी थी। जिसका अस्तित्व करीब ३५० ईसापूर्व तक था। यहां के कोलीय गणराज्य के प्रमुख राजा अंजन व राणी यशोधरा के दो पुत्र व दो पुत्रियां थी। पुत्रों के नाम सुप्पबुद्ध व दंदापानी व पुत्रियों के नाम महामाया(मायादेवी) व महा प्रजापति गौतमी था।
महामाया(मायादेवी) का विवाह लुंबिनी के राजा शुद्धोधन से हुआ। इन्हीं के पुत्र सिद्धार्थ थे। जो आगे चल कर भगवान गौतम बुद्ध के नाम से जाने गये। जो कि बौद्ध धर्म के संस्थापक रहे।
गौतम बुद्ध की जन्म स्थली से लगाये निर्वाण स्थली कुशीनगर ( ५६३ ई.पू.-४८३ ई.पू.) तक के जीवन काल के सभी ऐतिहासिक स्थल स्पष्ट हो गये हैं। मगर उनके ननिहाल “देवदह” में मतभेद हैं। इतिहासकार इतिहास के पन्नों में खंगाल रहे हैं, तो पुरातात्विक विभाग दावे किये गये स्थलों से मिलने वाले अवशेषों के अन्वेशष व इतिहास-मिलान से “असली देवदह” की तलाश में हैं।
,,ऐसे में बड़ा सवाल यही उठ़ रहा है कि “क्या बनरसिहा कला ही है भगवान बुद्ध का ननिहाल?