गुरु रविदास जी प्रकाश उत्सव आज: व्यक्ति जैसा कर्म करता है, वैसी पहचान पाता है

गुरु रविदास जी प्रकाश उत्सव आज: व्यक्ति जैसा कर्म करता है, वैसी पहचान पाता है

गुरु रविदास जी प्रकाश उत्सव आज: व्यक्ति जैसा कर्म करता है, वैसी पहचान पाता हैगुरु रविदास जी प्रकाश उत्सव आज: व्यक्ति जैसा कर्म करता है, वैसी पहचान पाता है

विख्यात संतों एवं भक्तों में श्री गुरु रविदास जी का नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है। आपका जन्म सीर गोवर्धनपुर (कांशी) में हुआ। आपके जन्म संबंधी यह दोहा प्रचलित है : चौदह सौ तैंतीस को , माघ सुदी पंद्रास। दुखियों के कल्याण हित, प्रगटे गुरु रविदास।

श्री गुरु रविदास जी के समय भारत राजनीतिक दृष्टि से तो गुलाम था ही यहां के लोग मानसिक गुलामी की जंजीरों में भी जकड़े हुए थे। इसके अलावा समाज ऊंच-नीच, जात-पात, वर्ग-विभाजन और धार्मिक संकीर्णता के जाल में भी फंसा हुआ था। आपने इन कुरीतियों से समझौता नहीं किया, बल्कि आदर्श समाज बनाने का संकल्प लिया। विलक्षण प्रतिभा के धनी श्री गुरु रविदास जी ने पराधीनता को पाप कहा है। आप स्वाधीनता को सुख और पराधीनता को दुख का मूल कारण मानते हैं। युगदृष्टा गुरु रविदास जी के समय समाज की स्थिति अति शोचनीय थी। समाज ऊंच और नीच वर्ग में विभाजित हो गया था। गरु रविदास जी ने समानता का पाठ पढ़ाते हुए फरमाया कि सभी प्राणी ईश्वर की ही संतान हैं। प्रभु के यहां कोई जात-पात नहीं है। संसार में आकर जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है, उसे उसी के आधार पर पहचान मिलती है :
कहि रविदास जो जपे नामु।। तिसु जाति न जनमु न जोनि कामु।। (पन्ना 1196)

आपने काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार पर विजय प्राप्त कर खुशहाल समाज की परिकल्पना की। आपने ऐसे समाज की परिकल्पना की जहां कोई छोटा-बड़ा न हो, चारों ओर खुशहाली ही हो। ऐसा आदर्श समाज गुरु रविदास जी के अनुसार बेगमपुरा (जहां कोई गम नहीं) है। उसकी रूप-रेखा इस प्रकार दी गई :
बेगम पुरा सहर को नाउ।।
दूखु अंदोहु नहीं तिहि ठाउ।।
नां तसवीस खिराजु न मालु।।
खउफु न खता न तरसु जवालु।।1।।
अब मोहि खूब वतन गह पाई।।
ऊहां खैरि सदा मेरे भाई ।।1।। रहाउ।।
काइमु दाइमु सदा पातिसाही।।
दोम न सेम एक सो आही।।
आबादानु सदा मसहूर।।
ऊहां गनी बसहि मामूर।।2।।
तिउ तिउ सैल करहि जिउ भावै।।
महरम महल न को अटकावै।।
कहि रविदास खलास चमारा।।
जो हम सहरी सु मीतु हमारा।।3।। (पन्ना 345)

गुरु रविदास जी फरमान करते हैं कि जिस आत्मिक अवस्था वाले ‘शहर’ (माहौल, समाज) में मैं बसता हूं उसका नाम ‘बेगमपुरा’  है। वहां न कोई दुख है, न कोई चिंता और न ही कोई घबराहट है। वहां किसी को कोई पीड़ा नहीं है। वहां कोई जायदाद नहीं है और न ही कोई कर लगता है। वहां ऐसी सत्ता है जो सदा रहने वाली है। वहां कोई श्रेणी-भेद नहीं है। गुरु रविदास जी फरमान करते हैं कि ऐसी खुशनुमा आबो-हवा वाले ‘शहर’ में जो रहेंगे वही हमारे मित्र हैं। तात्पर्य यह है कि प्रभु-मिलाप वाली आत्मिक अवस्था में सदैव आनंद ही आनंद बना रहता है।

गुरु रविदास जी जीवन भर एक ऐसे आदर्श समाज की संरचना एवं संभाल में संलग्न रहे जहां घृणा, भेदभाव और वैमनस्य नहीं था, समता और एकता का ही बोलबाला था।

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