नेपाल की मनमानी व भारतीय प्रशासन की लालफीता शाही से पूर्वांचल में बढ़ी महंगाई

नेपाल की मनमानी व भारतीय प्रशासन की लालफीता शाही से पूर्वांचल में बढ़ी महंगाई

नेपाल की मनमानी व भारतीय प्रशासन की लालफीता शाही से पूर्वांचल में बढ़ी महंगाई

नेपाल की मनमानी व भारतीय प्रशासन की लालफीता शाही से पूर्वांचल में बढ़ी महंगाई

विशेष संवाददाता-धर्मेन्द्र चौधरी की एक रिपोर्ट

आई एन न्यूज ब्यूरो नौतनवा:नौतनवा ,, करीब एक दशक़ पहले तक पूर्वांचल की सबसे बड़ी गिट्टी-बालू मंड़ी के रुप में विख्यात था, यहां से पूरे पूर्वांचल में सरकारी व गैर सरकारी निर्माण के लिये गिट्टी-बालू की सप्लाई होती थी। सस्ते व मजबूत गुणवत्ता वाले गिट्टी-बालू होने के कारण सरकारी टेंडर में इसी गिट्टी-बालू को प्रयोग करने की प्रथामिकता थी।
लेकिन नेपाल ने पर्यावरणीय कारणों का हवाला देकर गिट्टी-बालू की भारत में होने वाले निर्यात पर रोक लगा दी। नौतनवा गिट्टी-बालू मंड़ी से लगाये पूरे पूर्वांचल में हाहाकार मचा रहा। फिर शुरु हुई निर्माण कार्य में प्रयुक्त होने वाली गिट्टी-बालू की किल्लत, और महंगाई! आज आलम यह है कि मध्य प्रदेश, झारखंड़ व यूपी के झांसी क्षेत्र की दोयम दर्जे के गिट्टी-बालू निर्माण कार्यों में प्रयोग करने की मज़बूरी बन गयी है। जिनका दाम इतना महंगा है कि गरीब व मध्यमवर्गीय परिवारों के लिये एक अदद कमरा बनाना ही दूर के ढ़ोल साबित हो रहे हैं।
गिट्टी-बालू की बढ़ी कीमतों ने अप्रत्यक्ष रुप से पूरे पूर्वांचल में महंगाई के ग्राफ़ को काफी बढ़ा दिया है। साथ ही दसियों लाख लोगों को बेरोजगारी के कुंए में धक़ेल दिया।

,, समस्या विकराल है। बावजूद प्रदेश या केंद्र सरकार पूरे प्रकरण पर चुप है। कुछ़ स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने पूरे प्रकरण के निदान के लिये अपन स्तर के हाथ-पांव तो मारे, मगर शायद उन्हें इस बीमारी की नब्ज़ नहीं मिली।

इंड़ोनेपाल न्यूज वेबपोर्टल ने जब पूर्वांचल में गिट्टी-बालू के कारण बढ़ी महंगाई के कारणों की गहनता से पड़ताल की, तो कई चौंकाने वाले तत्थ्य सामने आये। जिसका मुख्य सार यह है कि इस पूरे प्रकरण में नेपाल सरकार की मनमानी, भारत सरकार की अनदेखी व भारत-नेपाल सीमा पर तैनात प्रशासनिक अमले की लालफीताशाही ने पूर्वांचल की महंगाई बढ़ा दी है, कैसे अब यह समझें——

सन् १९५० के भारत-नेपाल संधि में व्यापारिक व आपसी सहयोग की दृष्ट़ि नेपाल से गिट्टी-बालू भारत लाने की सहमति बनी थी। नेपाल से भारत आने गिट्टी-बालू (जो कि एक ख़निज की श्रेणी में है) पर नेपाल सरकार निर्धारित टैक्स लेती थी। हांलाकि भारत ने नेपाल से आने वाले गिट्टी-बालू को सभी करों (टैक्स) से मुक्त कर दिया। तीन से चार दशक के भीतर नेपाल से आने वाले गिट्टी-बालू ने पूर्वांचल में एक नये प्रकार के उद्योग का रुप ले लिया और लाखों लोगों को रोजगार भी मिला।
,,,फिर अचानक नेपाल सरकार ने गिट्टी-बालू की भारत में होने वाली निकासी पर रोक लगा दिया। यह रोक सरासर भारत नेपाल संधि १९५० के विपरीत थी।
भारत की तरफ़ से इस मुद्दे को न तो प्रदेश और न ही देश स्तर से उठ़ाया गया।
क्योंकि यहां सियासती मुद्दे इतने प्रखर होते गये कि विदेश नीति व कूटनीति का स्वरुप ज़मीन से परे हो गया।
परिणाम यह है कि ,,गिट्टी-बालू के बढ़े दामों नें पूर्वांचल को महंगाई के चपेट़ में ला दिया है। नेपाल में नदियों से खनन रह रह कर ज़ारी होते रहते हैं। ख़ुली सीमा होने के कारण नेपाल से गिट्टी-बालू आ सकते हैं। मगर यहां भारतीय एजेंसियां अपनी ही लालफीताशाही में मस्त इसे रोक रही हैं। न जाने किस नियम कानून के तहत? और भारत नेपाल संधि १९५० से अंजान! नेपाल की चालाकी से भी अंजान!
पूरे मामले में भारत की तरफ से एक उच्चस्तरीय वार्ता की जरुरत है।

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