अभिषेक राज की तारीफ़ हो तो विश्वदीपक त्रिपाठी को क्यों हो ज़लन?

अभिषेक राज की तारीफ़ हो तो विश्वदीपक त्रिपाठी को क्यों हो ज़लन?

अभिषेक राज की तारीफ़ हो तो विश्वदीपक त्रिपाठी को क्यों हो ज़लन?

अभिषेक राज की तारीफ़ हो तो विश्वदीपक त्रिपाठी को क्यों हो ज़लन?

धर्मेंद्र चौधरी की एक रिपोर्ट

आई एन न्यूज ब्यूरो महराजगंज:शीर्षक ही कुछ़ ऐसा सूझ गया कि आप लोगों को यह पढ़ना पड़ गया। सोंचा एक प्रयोग ही हो जाय कुछ़ इस तरह के लेख़न शैली की। जिसके अधिकतर पाठ़क पत्रकारिता से सरोकारिता रख़ने वाले लोग हो।,,,
,,,आप लोग पढ़ ही रहे हैं। इस लेख़ का उद्देश्य क्या है? कौतूहल भी होगा।
,,शीर्षक में नाम लिख़ना पड़ा। क्योंकि जिन नामों को लिखा गया वह देश के प्रतिष्ठित अख़बारों के महराजगंज जिला प्रभारी हैं। निश्चित रुप से वह जिले के महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं, जिम्मेदारियों के संदर्भ में। जनसमस्या, सरकारी फरमानों के अमलीज़ामा में अधिकारियों की गतिविधि, अपराध व उनके विष्लेषण, नेताओं की चहलकदमी और सबसे बड़ी बात यह कि जनता की मनोव्यथा तय कराने जैसा जिम्मा इनके पाले में है।
इस जिम्मे के निर्वहन में वे पूरे मनोयोग से जुट़े भी रहते हैं। अभिषेक राज का चानकी घाट बन स्ट़ोरी लिख़ना हो या फिर विश्वदीपक त्रिपाठी का किसानों के आत्मविश्वास को बढ़ावे जैसे बानगी लिए ख़बरें । सराहनीय होती हैं,,और लोग पढ़ते भी हैं।
फिर सवाल यह कि शीर्षक में ज़लन शब्द क्यों ड़ाला गया?
,,तहसील स्तरीय व ग्रामीण पत्रकारों को इस पर मनन की जरुरत है।
नौतनवा तहसील इकाई के जर्नलिस्ट प्रेस क्लब चुनाव में कैसी कैसी नौटंकी व उठ़ापट़क के माहौल बने।,,सोंचने को मज़बूर होना पड़ा कि कथ़ित पत्रकारों में भी मनमुट़ाव व ज़लन के भाव होते हैं?
जनता में सकारात्मक सोंच का प्रसार करने वाले लोग ख़ुद आपस में ही असकारात्मक भाव रख़ते हैं। दु:खद व गंभीर विषय है। ऐसा नहीं होना चाहिये ।
यह मुद्दा इसलिए भी महत्वपूर्ण बनाना या लिख़ना पड़ा क्योंकि महराजगंज जिला नेपाल सीमा का भारतीय मित्र है। रोट़ी बेट़ी रिश्ते जैसी प्रगाढ़ता के द्योतक जैसे श्लोगन् को हक़ीकत में भी बनाऐ रख़ने का जिम्मा भी महराजगंज का है। ,,अब कथित पत्रकार बंधु ही आपस में जलन भाव रखेंगे,,,तो जो स्वंय को चिल्लाते हैं न कि चौथा स्तंभ- चौथा स्तंभ । दीमक लग जायेंगे।
,,एक जुट़ता के भाव के साथ कार्मिक ईमानदारी की जरुरत है। पत्रकारिता के गिरते स्तर को उठ़ाने की जरुरत है।
होली पर्व आ ही रहा है। मिलन समारोह भी होंगे। गले मिलें और जन व सामाजिक उत्थान के अपने हिस्से के कार्यों में जुट़ जायें।
,,,बाक़ी अभिषेक राज जी और विश्वदीपक त्रिपाठी जी का नाम जिक्र कर दिया, तो वह समझदार हैं, लेख का उद्देश्य समझ जायेंगे ।
बुरा किसी को भी नहीं लगना चाहिए। और लगे भी तो क्या,,,

“बुरा न मानों होली है”!

होली की एडवांस शुभकामनाएं । इंडो-नेपाल न्यूज वेबपोर्टल, गुड्डू जायसवाल, विजय चौरसिया व मेरी तरफ से संदेश सभी पाठ़कों को कि प्रेम व आपसी सौहार्द से मनाएं होली पर्व ।

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