भारत-नेपाल सीमा पर टूट़ी फूट़ी पत्रकारिता क्यों?

भारत-नेपाल सीमा पर टूट़ी फूट़ी पत्रकारिता क्यों?

भारत-नेपाल सीमा पर टूट़ी फूट़ी पत्रकारिता क्यों?भारत-नेपाल सीमा पर टूट़ी फूट़ी पत्रकारिता क्यों?

आई एन न्यूज से धर्मेंद्र चौधरी के निज़ी विचार
आई एन न्यूज से धर्मेंद्र चौधरी के निज़ी विचार

कुछ़ वर्ष पहले का वाकया है।नेपाल के कुछ़ प्रबुद्ध वर्ग के लोगों ने जब मुझसे सवाल किया कि भारत-नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र में पत्रकारिता इतनी टूट़ी फूट़ी अवस्था में क्यों है?
यहां उनके “टूट़े-फूटे” वाक्य को मैने दो तरीके से समझने का प्रयास किया। एक “व्यंगात्मक लहज़ा” दूसरा उस व्यंग से “सीख़” का।
फिर उनसे वैचारिक आदान-प्रदान का सिलसिला शुरु हुआ। सवाल जवाब भी हुए।
फिर मुद्दों पर जिक्र हुआ। भारत-नेपाल के ऐतिहासिक संबंध, समझौतों और उनकी दरकार, विदेश व कूटनीति चहल कदमी, ,,आदि आदि पर। लेकिन इन बातों में सबसे बड़ी बात यह लगी कि “भारत-नेपाल सीमा “।
किन्हीं भी दो देशों की सरहद मिलान स्थल (सीमा) अपने आप में काफी महत्वपूर्ण होती है।
यहां पर होने वाली किसी भी गैरसमझौतीय गतिविधि दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व को आमने-सामने की ट़ेबल पर बैठ़ा सकती है। वैश्विक पंचायत का मौका भी बन सकता है।
,,फिर यहां “पत्रकारिता” पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले वाक्य “टूट़े-फूटे” का मतलब कुछ़-कुछ़ समझ में आने लगा।
अध्ययन व ज्ञान के दरकार की तलब़ लगी।
नेपाल के प्रबुद्ध बुजुर्गों को प्रणाम किया व आशीर्वाद लेने बाद उस “टूट़े-फूटे” शब्द के निचोड़ के लिये इतिहास, विदेश नीति, भारत-नेपाल संबन्ध व पत्रकारिता स्वरुप के पन्नों को खंगालने लगा।
और मिले संग्रहों की एक काल्पनिक रेखाचित्र बनाता गया। पत्रकारिता का एकदम से व्यवसाईकरण होने की बात, कम से कम भारतीय सीमा पर फिलहाल कई मायनों नुकसान देह लगती प्रतीत हुई।
भारत-नेपाल दोनों के परिपेक्ष में।
टीआरपी के चक्कर में मीड़िया या अख़बारी स्टंट कम से कम इतने तो न हों, कि मित्र भी शत्रु की राग अलापी करने लगे।
नेपाल में राजतंत्र की समाप्ति, माओवादी आंदोलन व मधेशी आंदोलन की सीमावर्ती भारतीय रिपोर्टिंग धुआंधार रही। फिर वह धुआंधारिता टीआरपी के चक्कर वाली हो गयी। कई घट़नाओं की अति व बढ़ाचढ़ा कर रिपोर्टिंग हो गयी।
नतीजा भारत पर नेपाल द्वारा आर्थिक नाकाबंदी का आरोप रहा। भारतीय सरकार को नेपाल के मनमुट़ाव को कम करने के लिये काफी मशक्कत करनी पड़ी। भारतीय मीड़िया ने भी अपने टीआरपी का झोला झम्मड़ उठ़ाया। और फिर अपने रिले स्टूड़ियो में चले गये। अपने अपने इस समय के कथित पारंपरिक कामों पर, टीआरपी होड़ के साथ।
,,और इधर सीमा पर छ़ोड़ गये टीआरपी संजोये रखने के जस्ट ओबे बास वाले कथित पत्रकार ।
इसका एक उदाहरण यही देखिए जिसे ” तस्करी” और “भारत-नेपाल सीमा पर तस्करी” की परिभाषा नहीं पता वह भी तस्करी के समाचार संकलित कर रहा है।
जो “दसगजा” का अर्थ नहीं जानता वह भारत नेपाल सरहद का कथित पत्रकार बने फिर रहा है। जिसे “प्रस्तावना” , “संदर्भ”, “व्याख्या” की समझ नहीं है। शब्द व वाक्य में अंतर नहीं पता। और तो और जिसे अपने ही देश के संविधान की मूल प्रस्तावना का बोध न हो।,,वह भारत-नेपाल सीमा का कलमकार बना फिरे। तो कोई भी “टूट़ा-फूटा” कह व्यंग मार ही देगा।
और जो व्यंग और आलोचना से भी न सीखे। उसका क्या?
फिलहाल मैं सीख रहा हूं। बड़े बुजुर्गों और जानकारों से,,
और आप???

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