संविधान की प्रस्तावना से कितने दूर “कारापथ” के लोग

संविधान की प्रस्तावना से कितने दूर "कारापथ" के लोग

संविधान की प्रस्तावना से कितने दूर "कारापथ" के लोग

संविधान की प्रस्तावना से कितने दूर “कारापथ” के लोग

धर्मेंद्र चौधरी की विश्लेषात्मक रिपोर्ट:

“हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथ निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठ़ा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंड़ता सुनिश्चित कराने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी संविधान सभा में आज तारीख़ २६ नवंबर १९५० ई (मिति माघ शीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत् २००६ विक्रमी) को एदत् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”

उक्त पंक्तियां भारतीय संविधान की प्रस्तावना हैं। या फिर इसे संविधान की आत्मा कह सकते हैं। जिसे अंगीकृत व आत्मार्पित न करना या फिर प्रतावना का शाब्दिक अर्थ ही समझ से परे होना।
तमाम तरह की सामाजिक विकृतियों या विवादों की जननी बन रही है।

२ अक्टूबर १९८९ से अस्तित्व में आया महराजगंज जिला जो कि “कारापथ” के नाम से भी जाना जाता था। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की तमाम गथाएं व प्रोफ़ेसर शिब्बन लाल सक्सेना त्याग व नेतृत्व के इतिहास को समेट़े हुए है।
आधुनिकता व डिजिटल युग कहे जाने वाले वर्तमान में महराजगंज (कारापथ) की जनसंख्या में साक्षरता प्रतिशत करीब ५७% है।
गोरखपुर, कुशीनगर, सिद्धार्थनगर व संतकबीरनगर जैसे जिलों व नेपाल सीमा के स्पर्श ने महराजगंज में कई सांस्कृतिक व सामाजिक विभिन्नताओं को काफी सलीके से संजोए रखा है।
करीब तीन दशक पूर्व यहां की साक्षरता दर १० फीसद रही। इस में करीब ४५% की उछ़ाल तो है।
लेकिन यह उछ़ाल उस स्तर तक आता नहीं प्रतीत होता है, जिससे कि लोगों में संविधान की प्रस्तावना के अर्थ समझने की रुचि जगे।
,,,और अधिक से अधिक लोग संविधान की प्रस्तावना को अंगीकृत व आत्मार्पित करें।

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