किसी बहाने सही! बाबा साहब आबेडकर याद तो आये

किसी बहाने सही! बाबा साहब आबेडकर याद तो आये

किसी बहाने सही! बाबा साहब आबेडकर याद तो आयेकिसी बहाने सही! बाबा साहब आंबेडकर याद तो आये

विशेष संवाददाता- धर्मेंद्र चौधरी
विशेष संवाददाता-धर्मेंद्र चौधरी

आई एन न्यूज ब्यूरो:: आज १४ अप्रैल है। गांव, कस्बों, शहरों और नगरों में भीम राव आंबेडकर जिन्हें बाबा साहब भी कहा जाता है। उनकी जयंती मनाई जा रही। कहीं कहीं ” भीम राव राम जी आंबेडकर की जयंती” का संबोधन कर लोग बाबा साहब को याद कर रहे हैं।
विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनैतिज्ञ व समाज सुधारक के रुप में प्रख्यात बाबा साहब को आजाद भारत के संविधान का प्रमुख वास्तुकार रहे। २९ अगस्त १९४७ को भारतीय “संविधान मसौदा समिति” के अध्यक्ष के रुप में उन्होंने संविधान को आकार देने में हर पहलुओं पर गंभीरता से मनन किया। संविधान का माड़ल भले ही पश्चिमी रहा, लेकिन उसमें भारतीय भावना का समावेश भी बाबा साहब ने कर दिया।
संविधान लेख़न पूर्ण होने के बाद बाबा साहब ने जो शब्द लिख़े उसे गौर करें,,,

“”मैं महसूस करता हूं कि संविधान साध्य है, यह लचीला है, पर साथ ही इतना मजबूत भी है कि देश को शांति व युद्ध दोनों के समय जोड़ कर रख सके। वास्तव में मैं यह कह सकता हूं कि अगर कहीं कुछ़ गलत हुआ तो इसका कारण यह नहीं होगा कि हमारा संविधान ख़राब था बल्कि इसका उपयोग करने वाला मनुष्य अधम था।“”

बाबा साहब के उक्त लिखित वाक्य मनन करने लायक हैं।

बाबा साहब के जयंती धूमधाम से मनी कई संगठ़नों ने मनाया। राजनैतिक संगठ़नों ने मनाया। कई लोगों ने बाबा साहेब आंबेडकर को याद किया। उनके चित्र पर पुष्प सुमन अर्पित किये। होना भी चाहिए। बाबा साहब याद आने चाहिए। क्योंकि वह हमें संविधान दिए हैं। संविधान की एक खूबसूरत प्रस्तावना दी है। शपथ दिलाई है कि भारत का प्रत्येक नागरिक संविधान की प्रस्तावना को आत्मार्पित और अंगीकृत करेगा।

मेरे व इंड़ोनेपाल न्यूज ट़ीम की तरफ से बाबा साहेब आंबेडकर को कोटिश: श्रद्धांजलि । आप सभी पाठ़कों को भी जो कि आज बाबा साहब आंबेडकर को याद किए हैं। किसी बहाने ही सही,,याद तो आये।

चलते चलते बाबा साहब के इन वाक्यों को भी जरुर पढ़ें और मंथन करें–

“”मैं व्यक्तिगत रुप से समझ नहीं पा रहा हूं कि क्यों धर्म को इतना विशाल, व्यापक क्षेत्राधिकार के रुप में दी जानी चाहिए, ताकी पूरे जीवन को कवर किया जा सके और क्षेत्र पर अतिक्रमण से विधायिका को रोक सके। सब के बाद हम क्या कर रहे हैं, के लिए स्वतंत्रता? हमारे सामाजिक व्यवस्था में सुधार के लिए यह स्वतंत्रता हो रही है। जो असमानता, भेदभाव व अन्य चीजों से भरा है। जो हमारे मौलिक अधिकारों के साथ संघर्ष करते हैं।””किसी बहाने सही! बाबा साहब आबेडकर याद तो आये

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