महाव नाला: मैं तमाशा बनता नहीं, तमाशबीनों ने बना दिया!
महाव नाला: मैं तमाशा बनता नहीं, तमाशबीनों ने बना दिया!
आई एन न्यूज महराजगंज डेस्क:
(धर्मेंद्र चौधरी की रिपोर्ट)
मैं महाव नाला हूं। प्रकृति की संरचना के एक जलप्रवाह का मार्ग हूं। नेपाल के रुपंदेही व नवलपरासी के सीमावर्ती क्षेत्र से उद्गमित हुआ मैं, भारतीय क्षेत्र के यूपी महराजगंज जिले के नौतनवा ब्लाक क्षेत्र में करीब १७ किलोमीटर तक आने के बाद सोहगीबरवां वन्य जीव प्रभाग के जंगलों में लुप्त हो जाता हूं। मैं हमेशा पारिस्थिकी बनाए रखने का सतत प्रयास करता हूं। कत्तई नहीं चाहता कि किसी को परेशान करू, तमाशा बनूं। लेकिन हर वर्ष मैं तमाशा बनता हूं। तमाशबीन आते हैं। चले जाते हैं। यही तमाशबीन हर बार कुछ़ ऐसे कदम उठ़ाते हैं कि मैं अगली बार तमाशा न बनूं। फिर भी मैं तमाशा बन जाता हूं। अब आदत सी पड़ गई है, फितरती हो चला हूं! तमाशा बनने का, और तमाशबीनों के मनोरंजन का!
पहले मैं ऐसा न था। मैं तमाशा न था। लेकिन वर्ष २००४ के बाद जाने क्या हुआ? मेरी सूरत तो जस की तस रही, लेकिन मैं फितरती तमाशा कुछ़ ज्यादे ही बनने लगा।
दु:ख होता है! जब मेरे दामन की दीवार को तोड़ कर निकली जलधारा किसानों की ख़ेत और फसल को बर्बाद करती। लेकिन मैं प्राकृतिक मजबूरी वश चाह कर भी कुछ़ नहीं कर पाता।
गुरेज़ मुझे भी है कि मेरे दामन मजबूत हों, किसी की हाय! न लें। लेकिन इस विडंबना पर हसीं आती है कि जो तमाशबीन हर वर्ष मेरे दामन को मजबूत करने का बीड़ा उठ़ाते हैं, फिर अगले साल मुंह उठ़ाए चले आते हैं। मुझे तमाशा बनाने और ख़ुद तमाशबीन बनने। फिर एक आडंबर शुरु होता है। मशीनें लगाते हैं, मजदूर लगाते हैं! साल-दर-साल! सिर्फ इसलिए कि मेरे दामन प्रौढ़ व सख्त हो जाएं। हो नहीं पाता। नाकारगी किसकी है? तमाशा बन गया हूं। थक़ गया हूं! चिढ़ने लगा हूं । इतना भी तमाशा न बनाओ कि दिल से बद्दुआ निकल जाए। ,,,और तुम सिर्फ तमाशबीन बन के रह जाओ।