एनएच 24 के किनारे से काट़े गये हजारों वृक्षों का कौन देगा हिसाब?

एनएच 24 के किनारे से काट़े गये हजारों वृक्षों का कौन देगा हिसाब?

एनएच 24 के किनारे से काट़े गये हजारों वृक्षों का कौन देगा हिसाब?

आई एन न्यूज महराजगंज ब्यूरो:
एनएच 24 के किनारे से काट़े गये हजारों वृक्षों का कौन देगा हिसाब?५ जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का जोश और जज्बा सोहगीबरवा वन्य जीव प्रभाग से आच्छ़ादित महराजगंज जिले में भी देखने को मिला। जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों ने पौधे लगाए। एक संदेश देने का प्रयास कि पेड़-पौधे हमारे पर्यावरण सजीव रख़ने के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं। होना भी चाहिए!
पर्यावरण हित में पौधे लगाना संजीदगी के दायरे में है। तो संजीदगी पेड़ों के काट़े जाने पर भी होनी चाहिए। वन विभाग तत्पर है। पेड़ काट़े जाने को लेकर तमाम नियम कानून व अधिनियम हैं। जिनके अनुपालन में वन विभाग से लगाए तमाम कई विभाग रह रह कर उपस्थिति दर्शाते रहे हैं।
बोट़ा बरामद, चिरान बरामद, अवैध लकड़ी पकड़ाई,,,आदि-आदि शीर्षकीय ख़बरे आती रहती हैं। जब्त की गई लकड़ियां कहां जाती हैं, कौन ले जाता है, इससे कितने की राजस्व या अर्थ का एकत्रण होता है। ये चीज़ें विभागीय आंकड़ों में बाकायदा रहती हैं। सार्वजनिक कम ही होती हैं।
१०, २० या ५० पेड़ों की लकड़ियों पर वैसे भी कोई ध्यान नहीं देता। न तो मीड़िया न ही आरट़ीआई एक्टिविस्ट। क्योंकि वन विभाग के पास लकड़ियों की अग्रिम कार्यवाई का जवाब फौरी रुप से मिल जाता है।
लेकिन पिछ़ले एक दशक के भीतर गोरखपुर-सोनौली राजमार्ग वृक्षों के संबंध में एक बड़ी कवायद् हुई। जिसका फौरी जवाब शायद किसी को नहीं मिल पाया। क्योंकि वह कवायद् ही फौरी नहीं थी।
गोरखपुर-नौतनवा राष्ट्रीय राजमार्ग-२९ का चौड़ीकरण हुआ। फिर चौड़ीकरण के बाद यह राजमार्ग- २९ से राजमार्ग-२४ के रुप में परिवर्तित हो गया। इस आमान परिवर्तन से लगाये नाम परिवर्तन के बीच मानीराम से लगाये सोनौली सीमा तक करीब ८० किलोमीटर लंबी सड़क के दोनों किनारों पर स्थित हजारों विशालकाय पेड़ काट़े गये। वन विभाग तथा वन विभाग की निगरानी में कई ठ़ेकेदारों पेड़ों को काट़ा। लकड़ियां वन निगम ले गया। बाद में उन पेड़ों की जड़ों को भी जेसीबी मशीनों से निकाला गया।

एनएच 24 के किनारे से काट़े गये हजारों वृक्षों का कौन देगा हिसाब?
फाइल फोटो

जनता व तात्कालिक जनप्रतिनिधि विकास के आहट़ की तरफ ध्यानाकृष्ठ़ हो गये। टू-लेन बन रहा है, फोर-लेन बन रहा है। इस चर्चा में मशगूल हो गये।
और उधर मार्ग किनारे काट़ी गई लकड़ियां कहां से कहां चली गई? कितने मूल्य की लकड़ी थी? किसी ने नीलामी ली, या किस आरा मशीन ने लकड़ियों को चीरा ? इन सभी का पुख्ता जवाब कम से कम एक विभाग के पास तो नहीं है।
गौर करने वाली बात यह रही कि उस भीषण कट़ान में वो पेड़ भी काट़े गये, जो मार्ग निर्माण में बाधा नहीं बनता?
इस दौरान दो तीन बार ६ जून आये। विश्व पर्यावरण मनाया गया। पौधे लगे । मगर काट़े जा रहे पेड़ों की सुधि कम ही लोगों को रही।
आज एनएच-२४ के किनारे सूने हैं। एक अदद पेड़ की छांव बामुश्किल ही देखने को मिल रही है। ऐसे में हिसाब और सवाल तो बनना लाज़मी है। ,,आख़िर कौन देगा एच-२४ के किनारों से काट़े गये हजारों वृक्षों का हिसाब?
,,,या फिर हम भी हजारों पेड़ों की शहादत भूल एक पौधा लगाएं ,,और मनाएं विश्व पर्यावरण दिवस?

(महराजगंज से धर्मेंद्र चौधरी की रिपोर्ट उ०प्र०)

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