आसमान से हुए कीचड़ के फौव्वारे,लोगो में कौतूहल

आसमान से हुए कीचड़ के फौव्वारे,लोगो में कौतूहल

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आसमान में क्या हुई गड़बड़ी, कि पड़े कीचड़ के फौव्वारे
आसमान से हुए कीचड़ के फौव्वारे,लोगो में कौतूहलआई एन न्यूज टीम:
१५ जून वर्ष २०१८ की दोपहर के बाद तराई के कई हिस्सों में कीचड़ के फौव्वारे पड़े। नौतनवा, लक्ष्मीपुर ब्लाक क्षेत्र के अलावा नेपाल के रुपंदेही व नवलपरासी आसमान से हुए कीचड़ के फौव्वारे,लोगो में कौतूहलजिले में भी कई स्थानों पर आसामान से कीचड़ की बारिश हुई। लोग कौतूहल में रहे कि हो क्या रहा है। आसमान से हुए कीचड़ के फौव्वारे,लोगो में कौतूहलकौतूहल व सवाल भी वाजिब है कि आसमान में गड़बड़ी क्या हो गई ? कीचड़ क्यों बरस रहे हैं?
इन सवालों के जवाब से पहले ये जानते हैं कि हमारे आसमान से हुए कीचड़ के फौव्वारे,लोगो में कौतूहलआसमान का गुणागणित क्या है।
आकाश के वायूमंडल में वैसे तो तमाम प्रकार की गैसे हैं। लेकिन सबसे अधिक नाइट्रोजन होता है। जो कि करीब ७८ फीसद है। २१ प्रतिशत आक्सीजन होता है, आसमान से हुए कीचड़ के फौव्वारे,लोगो में कौतूहलशेष १ प्रतिशत में सभी गैसें होती है।
हिंदमहासागर, अरब सागर व बंगाल की खाड़ी से वाष्पीकृत हुए जलांश बादल के रुप में आसमान में एकत्र होते हैं। फिर एक नियत तापमान में आने के बाद पुन: बारिश की बूंदों में तब्दील हो जाते हैं। जल आसमान से हुए कीचड़ के फौव्वारे,लोगो में कौतूहलवाष्पीकरण से बादल बनने ,फिर पुन: बारिश की बूंद बनने के दौरान आसमान में कई रासायनिक अभिक्रियाएं होती हैं। चूंकि अभिक्रियाएं आयनिक स्तर (धनायन व ऋणायन) तक होती हैं। इसलिए आसमान में बिजली भी बनती है।
अब सोंचने वाली बात यह है कि बारिश में कीचड़ आया कहां से? क्या यह कोई वायु प्रदुषण है?
क्या तराई के आसमान के ऊपर कोई धूल की परत वाला लेयर बन रहा है? जो वायुमंडलीय पारिस्थिकी में गड़बड़ी पैदा कर रहा है? ग्रीन हाउस प्रभाव तो नहीं है?
आसमान से हुए कीचड़ के फौव्वारे,लोगो में कौतूहलकीचड़ के फौव्वारे पड़े हैं! जाहिर है कुछ़ गड़बड़ है।
पूरे मामले की पड़ताल कौन करेगा? कहीं फौव्वारों के रुप में बरसे कीचड़ कोई घातक रसायन तो नहीं हैं। जिसके दुष्परिणाम बाद में नज़र आयें?
अगर इसे ग्रीन हाउस इफेक्ट (वायुमंडलीय प्रदुषण का एक कारक) माना जाय। तो यहां वायु प्रदुषण के मुख्य कारक भी देखने पड़ेंगे। तमाम ईंट भट्ठ़ों की चिमनिया, राइस मिलरों व नेपाल के कई फैक्ट्री यहां के वायु प्रदुषण कारक के रुप में नजर आ रहे हैं।
लेकिन उनके प्रदुषण में क्या सचमुच क्लोरो-फ्लोरो कार्बन इतने अधिक निकल रहे हैं, जो कि धरती से वायुमंडल में करीब ५० किलोमीटर ऊंचाई पर स्थित ओजोन की परत को तोड़ रहे हैं। जिससे सूर्य से आने वाली घातक अल्ट्रावायलट़ किरण को वायुमंडल में आसानी से आ जाने की हरी झंड़ी मिल जा रही है।
परिणाम है रहस्मय कीचड़ की बारिश!
नौतनवा से ( धर्मेंद्र चौधरी की रिपोर्ट) महराजगंज उ०प्र०

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