भूमिगत संगठन गांवों में आंबेडकर प्रतिमा स्थापना के नाम पर एकत्र करा रहा चंदा
गांवों में आंबेडकर प्रतिमा स्थापना के नाम पर चंदा एकत्र करा रहा एक भूमिगत संगठन
आईएनन्यूज महराजगंज डेस्क:
महराजगंज जिले के कई गांवों में भीमराव आंबेडकर की मूर्ति स्थापित करने के नाम पर चंदा एकत्र कराने वाला एक भूमिगत संगठन सक्रिय है। जो पिछ़ले छह माह से दलित बस्तियों में जाकर लोगों को प्रेरित कर रहा है कि वह अपने मोहल्ले में आंबेडकर की प्रतिमा लगायें और सुबह शाम उनकी पूजा अर्जना करें।
इस मामले के खुलासे की पहली कड़ी 14 अप्रैल को आंबेडकर जयंती के दिन सोनौली कोतवाली क्षेत्र के खनुआ गांव में मिली। यहां आंबेडकर प्रतिमा स्थापित करने को लेकर विवाद खड़ा हो गया। मौके पर उपजिलाधिकारी प्रेम प्रकाश अंजोर व सीओ डाक्टर धर्मेंद्र कुमार यादव मयफोर्स पहुंचे और वहां उपजाई जा रही आस्था से संबधित विवाद को काफी मशक्कत के बाद शांत किया। मामले में 100 से अधिक ग्रामीणों पर पुलिस ने निषेधक कार्रवाई की है। इसके बाद भी दो बार यहां आंबेडकर प्रतिमा को स्थापित करने को लेकर विवाद हो चुका है।
इस विवाद में प्रशासन ने गंभीरता दिखाई। जिससे कई अन्य गांवों में भी आंबेडकर प्रतिमा स्थापित करने की कवायद् थम गई है।
लेकिन गांवों में आंबेडकर के कैलेंडर बांट़ने व आंबेडकर की प्रतिमा लगाने को लेकर अभी भी गांवों में चंदा एकत्रण का काम जारी है।
जो संगठ़न आंबेडकर प्रतिमा को स्थापित करने को लेकर लोगों में प्रचार प्रसार कर रहा है। उसकी बहुजन समाज पार्ट़ी से जुड़ी होने की चर्चाएं थी। लेकिन बसपा के पदाधिकारी इस बात को ख़ारिज कर रहे हैं कि उनके पार्ट़ी से जुड़े लोग ऐसा कर रहे हैं।
बड़ा सवाल यह उठ़ रहा है कि महराजगंज जिले में आखिर वो कौन लोग हैं, जिन्हें आजादी के करीब 70 वर्ष बाद बाबा साहेब के प्रति अचानक इतनी आस्था समा गई है। कि वो उनकी प्रतिमा स्थापित करने को आतुर हो गये हैं।
मामले का एक और पहलू गौर करने लायक है। वह यह कि जिन दलित बस्तियों में प्रतिमा स्थापना की बात चर्चा में है। वहां अधिकतर परिवार गरीब या गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोग हैं। यहां की करीब 50 फीसद आबादी निरक्षर है। जिन्हें बाबा साहेब के जीवनी, संघर्ष या ऐतिहासिक महत्व के बारे में दूर दूर तक कोई गहन जानकारी नहीं है।
,,जाहिर है कि यहां जातिवादिता व सियासत की आड़ में आंबेडकर प्रतिमा को भुनाने का एक प्रयास किया जा रहा है। जिस पर एक बाज़िब अंकुश लगाने के लिए शासन व प्रशासन को मनन करना चाहिए। गरीब व पिछ़ड़े लोगों को जबरिया अस्था के गर्त में धकेल एक “झुंड” बनाने का ऐसा प्रयास निश्चित रुप में 21वीं सदी के भारत ट़ाईप का नहीं है। तभी तो न्यायलयों ने भी आस्था से जुड़ी प्रतिमाओं को स्थापित करने के लिए आवश्यक गाइड़ लाइन देने तक की नौबत आन पड़ी।
खनुआ गांव में 100 से अधिक ग्रामीण कार्रवाई के जद में आये। लेकिन उस संगठन के लोग हत्थे नहीं चढ़ पाये, जो कि इस विवाद को उपज़ाने के मूल कारक हैं।
खनुआ गांव के अलावा हरदी ड़ाली गांव, नौतनवा कस्बा के 7 वार्ड़ों, पुरैनिहा, श्यामकाट-जारा व खैराट़ी समेत लक्ष्मीपुर ब्लाक क्षेत्र के भी कई गांवों में आंबेडकर प्रतिमा स्थापित करने के नाम पर चंदा एकत्र कराये जाने की बातें सामने आ रही हैं।
,,जरुरत है एक जागरुकता अभियान की। जिससे कि भोले भाले लोगों को जातीय, धार्मिक व आस्था के नाम पर होने वाले राजनैतिक शोषण से रोका जा सके।
नौतनवा (धर्मेंद्र चौधरी की रिपोर्ट)