सायकिल रिक्शा पर टैक्श लगाने की तैयारी मे नेपाल की ओली सरकार;गुस्से मे लोग

सायकिल रिक्शा पर टैक्श लगाने की तैयारी मे नेपाल की ओली सरकार;गुस्से मे लोग

सायकिल रिक्शा पर टैक्श लगाने की तैयारी मे नेपाल की ओली सरकार;गुस्से मे लोग

सायकिल रिक्शा पर टैक्श लगाने की तैयारी मे नेपाल की ओली सरकार;गुस्से मे लोग
कम्युनिस्ट सरकार काठ की हाड़ी जैसी–अभिषेक प्रताप शाह

आईएन न्यूज़ नेपाल डेस्क

कृष्णानगर (नेपाल)ः नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार अपने पूर्ववर्ती स्वर्गीय मनमोहन अधिकारी सरकार के पैर्टन पर चलने की कोशिश में है, लेकिन दोनों सरकारों में फर्क साफ दिख रहा है. पूर्व में गांव से नगरपालिका तक के विकास के लिए उठाए गए कदमों से जहां जनता परिवर्तन की अनुभूति करते हुए मनमोहन अधिकारी की सरकार के जयकारे कर रही थी, वहीं ओली सरकार के प्रति गुस्सा पनप रहा है. राजधानी काठमांडू से लेकर मैदानी इलाकों तक सरकार विरोधी भावना तेजी से पांव पसार रही है.
गौरतलब है कि नवंबर 1993 से लेकर जुलाई 1094 तक मनमोहन अधिकारी की सरकार सत्ता में रही है. इस सरकार को नेपाली कांग्रेस का समर्थन प्राप्त था. संभवतः मुदृदतों बाद नेपाल में अधिकारी के नेतृत्व में पहली बार कम्युनिस्ट सरकार सत्ता में आई थी. अधिकारी सरकार को उस वक्त नेपाली कांग्रेस में मची आपसी फूट का भी लाभ मिला था. स्वर्गीय गिरिजा प्रसाद कोइराला और स्वर्गीय केपी भट्टाराई के बीच नेपाली कांग्रेस दो गुटों में बंटी हुई थी. भट्टाराई गुट में नेपाली कांग्रेस के 36 सांसद थे. इन्हीं 36 सांसदों ने तब 86 सदस्यीय कम्युनिस्टों को समर्थन देकर मनमोहन सरकार बनवाई थी.
नेपाल के लोग भी मानते हैं कि मात्र नौ माह के शासन काल में मनमोहन अधिकारी ने नेपाली जनता को परिवर्तन की अनुभूति कराई थी. उनकी कई योजनाएं सीधे जनता से जुड़ी हुई थीं. इसमें अपना गांव खुद बनाए योजना बेहद लोकप्रिय हुई थी. कहते हैं कि आपसी खींचतान के चक्कर में जो नेपाली कांग्रेस मनमोहन अधिकारी सरकार को सत्तारूढ़ कराए थे, वही अधिकारी की सरकार की लोकप्रियता से घबड़ा उठे थे. नेपाली कांग्रेस की परशानी उस वक्त देखने लायक थी, जब अधिकारी के शासन में हुए निकाय चुनाव में पहाड़ से लेकर मैदान तक कम्युनिस्टों का कब्जा हो गया. अधिकारी के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट सरकार की बढ़ती लोकप्रियता से परेशान होकर नेपाली कांग्रेस ने अधिकारी सरकार से समर्थन वापस ले लिया.

इससे महज नौ माह पुरानी मनमोहन अधिकारी की सरकार गिर तो गई लेकिन उसके बाद आम चुनाव तक नेपाल को स्थाई सरकार नसीब नहीं हुई. फिर तो कई सालों तक सरकार-सरकार का खेल चलता रहा. फिलहाल,  सात माह पूर्व नेपाल में नए लोकतांत्रिक संविधान के तहत हुए आम चुनाव में केपी शर्मा ओली के नेतृत्व में फिर कम्युनिस्ट सरकार सत्तारूढ़ हुई है.

ओली सरकार भी पूर्ववर्ती मनमोहन सरकार की तरह गांव से लेकर पालिका को स्वतंत्र रूप से समृद्ध करना चाह रही है लेकिन इस सरकार जो रूपरेखा है, उससे जनता में नाराजगी बताई जा रही है. जगह जगह आंदोलन की आशंका बढ़ रही है. मसलन, गांव तथा नगरपालिका को समृद्ध व स्वायत्त बनाने में जुटी ओली सरकार गांव तथा नगर पालिकाओं में गुमटी से लेकर सायकिल रिक्शा तक पर टैक्श थोपा जा रहा है. सरकार का यह फैसला जन हितैशी के बजाय जनविरोधी जैसा दिख रहा है.

इसमें किसानों और पशुओं तक को टैक्स के दायरे में लाया जा रहा है. जिन गांव पालिका व नगर पालिका में कम्युनिस्ट के मेयर अथवा अध्यक्ष हैं. वहां इसे लागू करने की तैयारी कर ली गई है, लेकिन जहां दूसरे दलों का कब्जा है वहां इसे लागू करने में अड़चन आ रही है. यही नहीं, कई जगहों से सरकार की इस योजना का विरोध भी शुरू हो गया है.

नेपाली कांग्रेस ने इस मुद्दे को लेकर संसद से लेकर सड़क तक सरकार के विरोध की रणनीति तय कर ली है. कृष्णा नगर क्षेत्र के नेपाली कांग्रेस सांसद अभिषेक प्रताप शाह का कहना है कि सरकार की यह नीति उसके लिए आत्मघाती साबित होगी. गरीबों का खून चूस कर विकास की कल्पना नहीं की जा सकती. कहा कि नेपाली कांग्रेस सरकार के इस जनविरोधी नीति की पुरजोर विरोध करेगी. सरकार को इस निर्णय पर रोलबैक करने के लिए मजबूर किया जाएगा. नेपाली कांग्रेस के सांसद ने कहा कि नेपाल में कम्युनिस्ट सरकार चूल्हे पर काठ की हांडी जैसी है जो बार बार नहीं चढ़ती.

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