केरल की कयामत में ‘देवदूत’
केरल की कयामत में ‘देवदूत’
कहते हैं इंसान भगवान का ही दूसरा रूप होता है। यह बात सच साबित हो रही है बाढ़ पीडि़त केरल में। ओणम, मसाले और कथकली के लिए मशहूर केरल के 14 में से 11 जिले अभी भी पानी में डूबे हुए हैं। लोग परेशान हैं, दाने-दाने को मोहताज हैं, बेघर हो चुके हैं। इन बाढ़ पीडि़तों की मदद के लिए सरकार तो आगे आई ही है, आम आदमी, एनजीओ, मदरसे और सेना के जवान भी दिन-रात एक किए हैं।
मार्च-अप्रैल की झुलसती गर्मी के बाद न सिर्फ केरल वासियों को, बल्कि समूचे देश के लोगों को 1 जून का बेसब्री से इंतजार होता है। दरअसल यह वह तारीख है, जब मानसून केरल में दस्तक देता है। इसी के साथ समूचे देश में मानसून के मिजाज का भी पता चलता है। लेकिन इस बार 1 जून केरल वालों के लिए प्रलय लेकर आई। जिस बारिश का लोग शिद्दत से इंतजार करते हैं, उसी पानी ने उन्हें बेघर कर दिया है। केरल में बाढ़ से हुए व्यापक जान-माल के नुकसान की तस्वीरें दहला देने वाली हैं।
इसकी वजह से अब तक 370 से ज्यादा लोगों की जानें चली गईं और हजारों करोड़ की क्षति की हो चुकी है। साढ़े 8 लाख लोग अभी 3 हजार 734 राहत शिविरों में रह रहे हैं। 59 पुल पानी में डूबे हैं। रेल और सड़क मार्ग ध्वस्त हो चुके हैं। फसलें बरबाद हो चुकी हैं। घर तालाब में तब्दील हो चुके हैं। निश्चित रूप से इन सबकी भरपाई में लंबा वक्त लगेगा और जिनकी मौत हो गई, उससे उनके परिवारों को हुआ नुकसान कभी पूरा नहीं हो सकेगा।
लेकिन बाढ़ से हुई इस तबाही के बीच बचाव और राहत कार्यों से लेकर मदद के स्तर पर जो तस्वीरें सामने आईं, वे किसी भी समाज के संवेदनशील होने की अहम कसौटी हैं। बहुत सारे लोग बिना वक्त गंवाए अपनी ओर से बाढ़ में फंसे पीडि़तों को बचाने के लिए पानी में उतर पड़े और खुद को जोखिम में डाल कर सैकड़ों लोगों की जान बचाई, उन्हें सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया। इसमें सरकार और समूचे तंत्र के अलावा, सेना और खासतौर पर आम नागरिक समाज की जैसी भूमिका सामने आई है, वह किसी मिसाल से कम नहीं है।
कहा जा रहा है कि केरल में इतनी बड़ी जल विभीषिका वर्ष 1924 के बाद पहली बार आई है। 1924 में मल्ला पेरियार बांध टूट गया था और हजारों लोग काल के गाल में असमय समा गए थे। हालांकि इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाढ़ पीडि़त केरल का हवाई दौरा करने के साथ ही केंद्र की ओर से तत्काल पांच सौ करोड़ रुपए दिए, लेकिन महाविनाश को देखते हुए यह राशि ऊंट के मुंह में जीरा है। केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन कहते हैं कि केवल मुख्य मार्गों की मरम्मत के लिए ही साढ़े चार हजार करोड़ रुपए की दरकार है। अन्य राज्य भी मदद के लिए आगे आए हैं। कई एनजीओ भी सहायता कर रहे हैं।
हालांकि किसी भी विपदा का सामना पहले स्थानीय निवासियों और फिर राज्य को ही करना पड़ता है। इस मायने में केरलवासी नई इबारत लिख रहे हैं। बात बच्चों से शुरू करते हैं। बच्चे भी इंसानियत को बचाने में किसी से पीछे नहीं हैं। तमिलनाडु के विलुपुर्रम की रहने वाली नन्ही अनुप्रिया ने अपनी गुल्लक के 9 हजार रुपए बाढ़ राहत कार्य के लिए दान कर दिए। उसे लगा कि इस रकम से साइकिल खरीदने से ज्यादा जरूरी बाढ़ पीडि़तों को बचाना है। उसके इस जज्बे का पता साइकिल निर्माता कंपनी हीरो के मालिक पंकज मुंजाल को चला, तो वह भी अभिभूत हो गए।
इसके बाद मुंजाल ने अनुप्रिया को अपनी कंपनी की साइकिल उपहार में देने का ऐलान कर दिया। इसी क्रम में केरल के एक कॉलेज की छात्रा हनान हामिद भी बाढ़ पीडि़तों की मदद के लिए आगे आई। हनान ने अपनी पढ़ाई के लिए एकत्र किए गए डेढ़ लाख रुपए राहत कार्य के लिए दान कर दिए। हनान वही छात्रा है, जिसे कॉलेज में पढ़ाई के साथ मछली बेचने को लेकर सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया था।
केरल के एक मछुआरे जैसल केपी भी इन दिनों सोशल मीडिया पर छाए हैं। राज्य के त्रिशूर माला और मल्लाप्पुरम के वेंगरा में मछुआरों ने रेस्क्यू ऑपरेशन टीम बनाई है। मलाप्पुरम स्थित तनूर में बाढ़ में फंसी महिलाओं को सुरक्षित निकालने के लिए एनडीआरएफ की टीमों ने नाव का इंतजाम किया और वे पीडि़तों तक पहुंची भी, लेकिन नाव तक पहुंचने और उसमें चढऩे के लिए महिलाओं के पास कोई सहारा नहीं था। यह देखकर मछुआरे जैसल उन महिलाओं की मदद को आगे बढ़े और बाढ़ के पानी में ही पत्थर बनकर खड़े हो गए।
इसके बाद एक-एक करके महिलाएं उनकी पीठ पर चढ़कर नाव में बैठने में सफल हो गईं। जैसल के इस जज्बे को देखकर एनडीआरएफ की टीम भी उनकी तारीफ करने से खुद को रोक नहीं सकी। केरल के मछुआरों के समूह ने अब तक बाढ़ में फंसे हजार लोगों को बचाया है। केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने जैसल व अन्य मछुआरों को ‘केरल मिलिटरी फोर्स’ की संज्ञा दी है। इसके अलावा नेवी के अफसर पायलट कमांडर विजय वर्मा ने जिस जांबाजी के साथ बाढ़ में फंसी दो महिलाओं को बचाया, उसके बदले लोगों ने उस मकान की छत पर ही लिख दिया- थैंक्स।
मध्य प्रदेश के एक व्यवसायी ने बेचने के लिए कंबल खरीदे थे, लेकिन केरल में बाढ़ पीडि़तों की हालत देखकर उसने अपना पूरा स्टॉक उनकी मदद के लिए बांट दिया। इसके अलावा मीडिया के कैमरे में एक ऐसे सुपरहीरो की तस्वीर कैद हुई, जिसने बाढ़ के कहर से टूट रहे पुल पर एक बच्चे को बचा लिया। नीले रेनकोट में भागता यह हीरो कैमरे की नजर में आ गया। यह जांबाज आपदा प्रबंधन टीम का एक अफसर था। वीडियो वायरल होते ही चारों तरफ उसकी तारीफ हुई। केरल के खिलाफ हर मैच में जान लगा देने वाली बेगलुरू फुटबॉल क्लब ने भी विपदा के समय भरपूर मदद की। इसके अलावा निपाह वायरस के संक्रमण से पत्नी को खोने वाले सजीश ने अपनी पहली तनख्वाह राहत कोष में जमा कर दी। सजीश की पत्नी लिनी पुथुस्सेरी वह नर्स थीं, जो केरल में निपाह वायरस से ग्रस्त मरीज के इलाज के दौरान खुद भी उसके संपर्क में आ गई थीं।
कहने का मतलब यह है कि जिस जज्बे के साथ केरलवासी बाढ़ से जूझ रहे हैं, वह साफ करता है कि तमाम भिन्नताओं और मतभेदों के बाद भी इंसानियत को जिंदा रखना है।