सोनौली बार्डर का गजब:मजा” मारे “कस्ट़म” धक्का सहे “पुलिस” पंचायत करे “पत्रकार”!

सोनौली बार्डर का गजब:मजा" मारे "कस्ट़म" धक्का सहे "पुलिस" पंचायत करे "पत्रकार"!

सोनौली बार्डर का गज़ब: मजा” मारे “कस्ट़म” धक्का सहे “पुलिस” पंचायत करे “पत्रकार”!

सोनौली बार्डर का गजब:मजा" मारे "कस्ट़म" धक्का सहे "पुलिस" पंचायत करे "पत्रकार"!इंड़ो नेपाल न्यूज ब्यूरो 🙁धर्मेंद्र चौधरी की रिपोर्ट) शीर्षक में जो ” मजा” शब्द इंगित किया गया है। वह “पैसा” है। कस्ट़म विभाग इसे अपने शब्दों में “राजस्व” यानि “रेवव्यू” कहता है।
केंद्र सरकार की एजेंसी है, ढंग के पढ़े लिखे लोगों की तैनाती भी हैं। तो जाहिर है जवाब तार्किक और नियमत: ही आयेंगे।
पुलिस महकमा! जनता के बीच रहना है। जिम्मेदारी का दायरा बड़ा है। जवाबदेही भी बड़ी है।
पत्रकार ! विभिन्न एजेंसियों के नुमाएंदे है। सरहद पर अधिकतर अवैतनिक और विज्ञापन के कमीशन पर जैसे-तैसे कलम डुलाने वाले हैं। फिर भी सरहद पर एक अहम जिम्मेदारी निर्वाह कर ही रहे हैं।
मुद्दा! राष्ट्रीय राजमार्ग पर सोनौली सीमा के रास्ते नेपाल जाने वाले मालवाहक वाहनों की कतार व कथित कट़िंग के खेल का है।
कस्ट़म की रेवन्यू वसूली निर्वाद रुप से जारी है। पुलिस कतार व बिगड़ी यातायात व्यवस्था को लेकर परेशान है।
ऐसे हालत में पुलिस का पत्रकारों से समन्वय बैठ़क क्यों? बड़ा सवाल है।
नौतनवा थाने में पत्रकारों को आखिर किस समन्वयता के लिए बुलाया गया। कहा गया कि राय दें? जिस काम के लिए एजेंसियां हजारों रुपये वेतन लेती हैं। उसका हल निकालने के लिए पत्रकारों की सलाह? गज़ब है,,हैरत है,,बाउंस वाली बात प्रतीत हो रही है।
,,या फिर सरहद पर जो खेल चल रहा है,,उसमें कुछ़ कथित पत्रकार भी क्रिकेट़ टाइप की विकेट़ कीपिंग , बालिंग या कैचर फिल्डर की तरह काम कर रहें हैं। ऐसे-वैसे जैसे-तैसे?
पत्रकारों ने ही हल्ला किया तो एक वसूली में लिप्त सोनौली का सिपाही लाइन हाजिर हुआ। रोज-रोज मीड़िया की सुर्खियों में पुलिस की कार्यप्रणाली प्रणाली पर सवाल उठ़ रहे हैं।
सांसत तो है ही। कस्टम विभाग बांछ़े खिलाए है। हमारा क्या हम तो रेवन्यू वाले हैं। अधिक सवाल हुए तो जांच स्थल व संसाधनों की कमी तथा इंटीग्रेटेड़ चेक पोस्ट़ न होने का पुराना रट़ा-रट़ाया राग अलाप ही देंगे।
ठ़ीक उसी तरह जब पिछ़ले दिनों में कस्टम पास हुई ट्रक पर प्रतिबंधित बासमती का चालव पकड़ा गया। ,,,वगैरह-वगैरह तरह के कई मामले हैं।
आनलाइन-ट़ोकन-वाहन को सीमा पार भेजनें की मुख्य संस्तुति का अधिकार कस्ट़म विभाग को है। ऐसे में कतारों का खेल से कस्ट़म विभाग को जुदा करना ,,एक तरह की नाइंसाफी है। बड़ी जवाब देही कस्ट़म विभाग की भी है। प्रतिदिन लाखों रुपए एकत्र करने वाली एजेंसी जवाबदेही की फेहरिस्त में न हो। यह बात कम से कम इंडोनेपाल न्यूज़ को हज़म नहीं होगी।
सवाल तो होंगे ही। जैसे कि ये “मजा” मारे “कस्ट़म” धक्का सहे “पुलिस” पंचायत करे “पत्रकार ” ।

नोट़- इंडोनेपाल न्यूज भारत-नेपाल सीमा का एक जिम्मेदार न्यूज पोर्टल है। हर सरहदी गंभीर मुद्दे पर वह अपने प्रबुद्ध पत्रकारों द्वारा इस तरह की आलोचनात्मक रिपोर्ट भेजती रहेगी – धर्मेंद्र चौधरी ( एड़िटर – इंडोनेपाल न्यूज वेबपोर्टल )
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