पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी को लेकर सिस्टम पर बड़ा सवाल

पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी को लेकर सिस्टम पर बड़ा सवाल

पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी को लेकर सिस्टम पर बड़ा सवाल
आई एन न्यूज देहरादूंन डेस्क:
उत्तर प्रदेश के बाहुबली और पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी पिछले साढ़े सात साल से कहां हैं? दून जेल प्रशासन को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।
यह मामला पूरे सरकारी सिस्टम को ही सवालों के कठघरे में खड़ा कर रहा है।
मई, 2003 में लखनऊ की उभरती कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या के मामले में अमरमणि त्रिपाठी को गिरफ्तार किया गया था। देहरादून की सीबीआई अदालत ने 2007-08 में त्रिपाठी और अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। कुछ समय देहरादून जेल में निरुद्ध रहे त्रिपाठी ने ज्यादातर वक्त गोरखपुर मेडिकल कॉलेज या फिर वहां की जेल में बिताया। यूपी की राजनीति में त्रिपाठी का अच्छा-खासा रसूख रहा है।
तमाम राजनीतिक दलों से उनका नाता भी रहा। आमतौर पर सजायाफ्ता कैदियों को पैरोल देने के लिए सरकारें नियम-कानून पढ़ाती हैं, मगर त्रिपाठी के लिए पूरे सिस्टम को ताक पर रख दिया। मार्च, 2012 में अमरमणि को दून जेल से एक मामले की सुनवाई में गोरखपुर ले जाया गया था, लेकिन तब से वे नहीं लौटे। मेडिकल ग्राउंड पर अमरमणि ने काफी समय गोरखपुर मेडिकल कॉलेज के साथ ही लखनऊ और दिल्ली एम्स में बिताया।
गोरखपुर का जेल प्रशासन अब उत्तराखंड को नहीं बता रहा है कि त्रिपाठी कहां हैं?
हाईकोर्ट ने भी दिए थे शिफ्ट करने के आदेश
दून जेल से गोरखपुर जाकर मेडिकल कॉलेज में भर्ती किए गए अमरमणि को वापस दून जेल में शिफ्ट करने के लिए मधुमिता शुक्ला की बहन निधि ने नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। सितंबर, 2019 में हाईकोर्ट ने अमरमणि को देहरादून शिफ्ट करने के आदेश दिए थे, लेकिन तब से उन्हें यहां नहीं लाया जा सका है।
किसी भी सजायाफ्ता और बंदी को एक साल में दो महीने से अधिक दिनों तक पैरोल देने की व्यवस्था नहीं है। लेकिन बाहुबली अमरमणि की पैरोल को लेकर सरकार के पास ही पूरी जानकारी नहीं है। उत्तराखंड में पहले जिला प्रसाशन को 15 दिनों तक पैरोल देने का अधिकार था, लेकिन अब सरकार ने इसे शासन के अधीन कर दिया है।
अमरमणि त्रिपाठी 13 मार्च, 2012 को एक मामले की सुनवाई में देहरादून जेल से अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी गोरखपुर की अदालत में पेशी के लिए भेजे गए थे। तब से वे वापस देहरादून नहीं लौटे। इस बारे में गोरखपुर जेल प्रसाशन को पत्र भी भेजे गए, लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं मिला है।
डॉ, पीवीके प्रसाद महानिदेशक, जेल
( साभार हिंदुस्तान)

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