कोरोना मृतक के प्रति भेदभाव ठीक नहीं—-डाँ वंदना
कोरोना मृतक के प्रति भेदभाव ठीक नहीं—-डाँ वंदना
कोविद-19″ संक्रमित मृतक के शरीर की व्यवस्था और अंतिम संस्कार विषयक राष्ट्रीय कार्यशाला
आई एन न्यूज महराजगंज डेस्क:
सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफॉर) संस्था के सहयोग से कोविड-19 ‘‘संक्रमित मृतक के शरीर की व्यवस्था और अंतिम संस्कार से जुड़ी विज्ञप्ति’’ विषयक राष्ट्रीय कार्यशाला में कई अहम निष्कर्ष और संदेश सामने आए हैं। इस राष्ट्रीय वेबनॉर में उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ और नई दिल्ली समेत कई राज्यों के विषय-विशेषज्ञों और मीडिया ने बुधवार को कोविड-19 के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। राष्ट्रीय विमर्श में सभी विशेषज्ञों ने इस मुद्दे पर जोर दिया कि न केवल कोरोना संक्रमित के प्रति लोगों को नजरिया बदलना होगा, बल्कि अगर इस बीमारी के कारण अगर किसी की मौत हो जाती है तो उसके शव के प्रति भी व्यवहार परिवर्तन की आवश्यकता है। यह निष्कर्ष भी सामने आया कि संक्रमित शव से संक्रमण का खतरा 4 घंटे बाद कम हो जाता है। बावजूद इसके अगर शव के अंतिम संस्कार में शामिल हो रहे हैं तो भारत सरकार द्वारा सुझाए गए साफ-सफाई के तौर तरीकों को अपनाना चाहिए। हालात से डरने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि एहतियात के साथ मजबूती से लड़ने की आवश्यकता है।
वेबनॉर के शुभारंभ पर सीफॉर की तरफ से सभी पैनलिस्ट का स्वागत करते हुए संस्था की निदेशक अखिला शिवदास ने विषय की गंभीरता के महत्व पर प्रकाश डाला।
प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. वंदना प्रसाद ने कहा कि स्वस्थ होना, जीना-मरना मानव जीवन का हिस्सा है। कोरोना मृतक के प्रति भेदभाव ठीक नहीं है। मृत शरीर से किसी को कोई दिक्कत नहीं है। जिस प्रकार कपड़े और और कागज पर ज्यादा देर वायरस नहीं टिकता है, उसी प्रकार शव पर भी अधिकतम 4 घंटे तक ही वायरस टीक सकता है।
डॉ. टी सुंदर रमन ने कोरोना संक्रमित के शव के प्रति समाज में फैले भय और भ्रांतियों का खंडन किया। उन्होंने कहा कि कि अभी तक कोरोना के जितने मामले आए हैं उनमें किसी भी डेडबाडी के कारण कोरोना फैलने का अब तक का कोई भी केस रिपोर्ट नहीं हुआ है।
आईआईटी दिल्ली में प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. दिनेश मोहन ने विषय को और अधिक विस्तार दिया और समझाया कि चूंकि शव सांस नहीं लेता, न छींक सकता है न खांस सकता है, न हंस सकता है न ही जोर से बोल सकता। ऐसे में संक्रमित के शव से संक्रमण का खतरा नहीं है। लोगों को चाहिए कि शव के बारे में अनावश्यक भ्रांति न पालें।
मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. जॉन दयाल ने कहा कि जब तक कोरोना संबंधित रिपोर्ट नहीं आई होती है तब तक लोग उस व्यक्ति के सन्निकट रहते हैं और पॉजीटिव रिपोर्ट आते ही व्यवहार बदल जाता है।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे मानवाधिकार कार्यकर्ता नताशा बधवार ने कहा कि यह एक मानवीय संकट है। तमाम भ्रांतियां हैं जिनकों दूर करना होगा। इस कार्य में मीडिया का अहम योगदान हो सकता है।
मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने कहा कि भय और भ्रांतियों से निपटने के सिर्फ दो ही तरीके हैं। एक तो विज्ञान और दूसरी सटीक सूचना। इन दोनों तरीकों से लोगों के बीच फैले भय और भ्रांति को समाप्त करना होगा।
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मां-बाप, बच्चे और जीवन साथी भी नहीं दे रहें साथ
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वेबनॉर के दौरान विशेषज्ञों ने कहा कि पिछले तीन महीने में कई ऐसे मामले देखने को मिले हैं जिनमें कोरोना संक्रमित लोग अपने अंतिम समय में अपने मां-बाप, बच्चे या जीवनसाथी का साथ नहीं पा सके। कार्यशाला में महराजगंज के वरिष्ठ पत्रकार दीपक शरण श्रीवास्तव ने भी प्रतिभाग किया।
महराजगंज उ०प्र०