प्रवासी भारतीय संकट में
प्रवासी भारतीय संकट में
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कोविड 19 से उपजे हालात के साइड इफेक्ट के तौर पर एक और समस्या देश के सामने आ खड़ी हुई है। कई खाड़ी देशों से बेरोजगार होकर प्रवासी कामगारों की बड़ी तादाद भारत लौट चुकी है। लेकिन अब उनकी वापसी की संभावना पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं। कुवैत की नेशनल एसेंबली में एक बिल लाया जा रहा है । जिसका मकसद देश में प्रवासियों की संख्या में जबरदस्त कमी लाना है । अभी कुवैत की कुल आबादी 70 फ़ीसदी हिस्सा प्रवासियों का है। इसे कम करके 30 फ़ीसदी तक लाने का इरादा इस बिल में जताया गया है। वहां प्रवासी भारतीयों में बड़ी संख्या भारतीयों की है । माना जा रहा है कि यह बिल इसी रूप में अमल में आ गया तो करीब 8 लाख प्रवासी भारतीयों का कुवैत से साथ छूट जाएगा। ध्यान रहे, 2018 में सिर्फ कुवैत से ही करीब 4.8 अरब डालर भारत भेजे गए थे। यूं भी प्रवासियों की नियमित कमाई प्राप्त करने में भारत दुनिया में अव्वल है। 2018 में यह राशि देश के जीडीपी का 2.9 फ़ीसदी आंकी गई थी। अभी करोना और तेल कीमतों में गिरावट के मिले-जुले प्रभाव का नतीजा यह देखने को मिल रहा है कि भारतीयों पर चौतरफा संकट आ पड़ा है। बिल भले कुवैत में आ रहा हो पर समस्या कुवैत तक सीमित नहीं है। सारे खाड़ी देश कोरोना और सस्ते तेल की दोहरी मार झेल रहे हैं, और समाधान प्रवासियों की संख्या घटाने में देख रहे हैं। हालांकि यह कोई नई बात नहीं है। जब भी इन देशों पर कोई आफत आती है सबसे पहले उनकी नजर बाहर से आकर काम कर रहे लोगों पर ही जाती है। यह अलग बात है कि इससे उनकी बीमारी का कोई स्थाई इलाज नहीं निकलता । सऊदी अरब सबसे पहले ऐसे उपाय घोषित करने वाला देश रहा है। 1975 में वहां के कुल कामगारों में 75 फीसदी
मूलनिवासी और 25 फीसीदी प्रवासी थे। पर 40 साल बाद 2015 में प्रवासी कामगारों का प्रतिशत घटने की बजाय बढ़ कर 57% हो गया। ऐसा सिर्फ सऊदी अरब में नहीं, तमाम खाड़ी देशों में हुआ है । कतर और संयुक्त अरब अमीरात में 95 फीसीदी
कुवैत में 86 किसी दी ओमान में 81 फ़ीसदी और बहरीन में 73 कामगार दूसरे मुल्कों के हैं। इसके पीछे कम मजदूरी ही नहीं काम की क्वालिटी की भी बड़ी भूमिका है। जो काम प्रवासी करते हैं, उन्हें करने में इन देशो के मूल निवासी अपनी बेज्जती समझते हैं। संभवत इन्हीं वजहों से कई विशेषज्ञों का मानना है कि प्रवासी विरोधी राजनीतिक प्रशासनिक कदमों का कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा । लेकिन कुछ समय के लिए भी अगर प्रवासी भारतीयों को बेरोजगार रहना पड़ा तो भारत को न सिर्फ उनके लिए कुछ इंतजाम करने होंगे बल्कि विदेशी मुद्रा के मोर्चे पर बड़ा झटका झेलना पड़ेगा।
जय हिंद जय भारत ।