बीता वर्ष —नववर्ष की अशेष शुभकामनाएं—जगदीश गुप्त

बीता वर्ष ---नववर्ष की अशेष शुभकामनाएं---जगदीश गुप्त

बीता वर्ष —नववर्ष की अशेष शुभकामनाएं—जगदीश गुप्त
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मौजूदा साल अब कुछ ही घंटों में अतीत बनने को है, पिछले तमाम सालों की तरह। मगर इस साल ने हमें कुछ अतिरिक्त सबक दिए। वस्तुतः कोरोना नवशत्रु के साथ-साथ नवगुरु बनकर आया। जाहिर तौर पर उसने न सिर्फ सेहत का अभूतपूर्व संकट खड़ा किया, बल्कि बाजार, व्यापार, आचार, व्यवहार से लेकर जीवन के मूल संस्कार तक सिकोड़ दिए। जीवनचर्या में ऐसे-ऐसे जरूरी बदलाव किए जो उलटबांसियों के सटीक उदाहरण बन गए। मसलन; घर से तभी निकलें जब निकलना बेहद जरूरी हो; अनजान छोड़ें अपनों से भी दूरी बनाकर रहें; रोग-व्याधि, हादसे और मृत्य जैसी दुखदायी घड़ियों में भी सामाजिकता के तक़ाज़े को भुलाए रहें; जन्म से लेकर विवाह संस्कारों तक में सहभागिता से बचें; स्कूल-कॉलेज परिसर में कदम न रखें; मंदिर-मस्जिद की तरफ न झांकें; पर्व-त्योहारों पर भी सामाजिक मिलन से दूर रहें; आदि आदि..।
लेकिन कोरोना का एक दूसरा चेहरा भी नमूदार हुआ। प्राकृतिक नवगुरु का, जिसने हमें जीवन के वे जरूरी सबक याद दिलाए जिन्हें हम भौतिकता की रेस में लगभग भूल बैठे थे। यकीन मानिए कि हम सब यह मान चुके थे कि अब प्रकृति दोबारा उल्लसित होने से रही; उसका यौवन लौटने से रहा; उसका श्रेष्ठ अब मिलने से रहा। लेकिन ऐसा हुआ। सिर्फ और सिर्फ कोरोना की क्रूरता के कारण। हम रोए तो प्रकृति दोबारा मुस्कुरा सकी। धरती हरी हुई, आसमान नीला, सूरज सुनहरा, चंद्रमा रुपहला, नदियां निर्मल, सागर चंचल….। कुल मिलाकर सहअस्तित्व का अभीष्ट जीवनदर्शन पुनर्पल्लवित हुआ।
स्वच्छता, सादगी और संयम जीवनचर्या के अनिवार्य अनुशासन बने। अपव्यय की अपसंस्कृति से मुक्ति मिली। दिखावे के दुर्गुण दूर हुआ। आवश्यकता और विलासिता की पृथक्करण रेखा गहरी हुई। परोपकार की प्रवृति मुखर हुई। अपनों, खासकर बुजुर्गों की परवाह और स्वास्थ्य के प्रति सजगता बढ़ी। चिली फ्लिक्स और ऑर्गेनो की जगह तुलसी, अदरख, लहसुन, हल्दी, काली मिर्च, दालचीनी, लौंग जैसे प्राकृतिक औषधीय अवयव खानपान में दृढ़ता से शुमार हुए। योग-व्यायाम का महत्व पुनर्स्थापित हुआ। कुल मिलाकर हमने जीने की नई और जरूरी कलाएं सीखीं-आत्मसात कीं।
कहते हैं कि सामूहिकता के आगे बड़ी से बड़ी चुनौतियां भी बौनी पड़ जाती हैं। नववर्ष में सबसे बड़ी चुनौती सामूहिक रूप से इन्हीं कलाओं के बंधन से बंधे रहने की होगी। जीवन की सहजता-सरलता के लिए यही सबसे आवश्यक भी है। तो आइए एक बार फिर प्रकृति से करीबी नाता जोड़ते हुए सहअस्तित्व का मूलमंत्र कण्ठस्थ करें। स्वच्छता, सादगी और संयम के लिए प्रतिपज्ञ हों। फिर चाहे कोरोना की जितनी भी नई श्रृंखला हमलावर हो, पराजय उसी के हिस्से लिखी जाएगी। आने वाला वर्ष आपकी जीत का हो, प्रीत का हो, मनमीत का हो, नई रीत हो…..।
नववर्ष की अशेष शुभकामनाएं
जगदीश गुप्त
नौतनवाँ महाराजगंज उत्तर प्रदेश

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