माओवाद के रास्ते पर जा सकते हैं मधेशी – नेपाल के पूर्ण गणतंत्र बनने में रोड़ा बन सकता है मधेशियों का अधिकार

माओवाद के रास्ते पर जा सकते हैं मधेशी - नेपाल के पूर्ण गणतंत्र बनने में रोड़ा बन सकता है मधेशियों का अधिकार

,,, माओवाद के रास्ते पर जा सकते हैं मधेशी 

– नेपाल के पूर्ण गणतंत्र बनने में रोड़ा बन सकता है मधेशियों का अधिकार 

– मधेशी दलों में राजनैतिक स्वार्थ वश  दरारें भी एक गंभीर विषय 

आईएन न्यूज, नेपाल से धर्मेंद्र चौधरी की विशेष रिपोर्ट :

राजतंत्र की समाप्ति के बाद अपने पूर्ण गणतांत्रिक राष्ट्र बनने के मुहाने पर खड़ा नेपाल देश अपने समाजिक- भौगोलिक स्वरुप और नस्ल भेद की आग में सुलग रहा है। संविधान भी लगभग लागू है, मगर संविधान के स्वरुप से नेपाल के मैदानी क्षेत्र में रहना वाला मधेशी समुदाय असंतुष्ट है। मधेशी आवाज को बुलंद करने के लिये कई मधेशी दल भी हैं। मगर पिछले दिनों अलग मधेश राष्ट्र की मांग को लेकर हुये आंदोलनों के परिणाम और दलों के प्रमुख नेता की गतिविधियां यह स्पष्ट कर रही हैं कि सब कुछ स्वार्थ परक राजनीतिक के लिये हो रहा है। 

पिछले दो दशक की नेपाली राजनैतिक हलचल पर नजर डालें तो, चीन की हथियार के बल पर राज करने की विचारधारा ” माओवाद ” का बोलबाला रहा है। ” खुनी खेल” से दहशत और दबाव पैदा कर माओवादी दल देश की सत्ता पर भी आसीन हैं। एकीकृत माओवादी, नेकपा, एमाले, कांग्रेस व विप्लव माओवादी भले ही राजनैतिक पार्टियां बनने की दावेदारी करें, मगर राजनैतिक चोला में उनका आंदोलन “हथियार” ही है।

अधिकारों को मांगने के लिये पिछले दिनों भारतीय मूल के नेपाली बाशिंदों ने भी अलख जगायी। मांग अलग प्रदेश व मधेश समाज को संविधान में बराबर के अधिकार की रही। आंदोलन शुरु में शांतिपूर्ण रहा, बाद में हिंसक हो चला। कई मधेशी मार दिये गये। नौबत भारत सरकार के हस्तक्षेप की आ गयी। मगर नेपाल के माओवाद से ग्रसित सरकार ने बड़े ही कूटनीतिक तरीके अपने देश का मामला बता, भारत पर आर्थिक नाकाबंदी का आरोप लगाया और चीन की मदद से वैश्विक पटल पर भारत की किरकिरी भी करवाई ।

इधर तात्कालिक मधेशी दलों के नेता भी राजनैतिक लाभ वश “माओवाद ” ग्रसित सत्ता पक्ष से अप्रत्यक्ष रुप से मिल गये।,, नतीजा यह रहा कि मधेशियों की कोई भी बाजिब मांग नेपाल के संविधान के पन्नों पर लिपिबद्ध नहीं हो पायी। अब फिर कुछ मधेशी दल  ” अलग राष्ट्र ” जैसी बड़ी मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। लेकिन वह नेपाल सरकार की दमनात्मक कार्यवाही के आगे बेबस हैं। मधेशियों के पास अंतिम विकल्प यही दिख रहा है कि ” लोहे की काट लोहे” से ही हो सकती है। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि ,,क्या माओवाद के पथ पर जायेंगे मधेशी ? साथ ही मधेश आंदोलन पर कैसी होगी भारत व चीन की कूट नीति?

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