संपादक की कलम से— हितार्थ बुजुर्गों के

संपादक की कलम से--- हितार्थ बुजुर्गों के

हितार्थ बुजुर्गों के
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हमारा समाज पहले पेड़ों, पत्थरों से लेकर जानवरों तक को पूजता था और माता-पिता को आदर्श मानकर उनका पूरा सम्मान करता था। पूरी दुनिया में भारत एक ऐसा देश है जहां तीन पीढ़ियां एक ही घर में अपना जीवन बिता देती थी, लेकिन आज पश्चात से वशीभूत देश के नौजवान अपने जीवन दाता को कि भोज समझने लगे इस तरह की सोच मध्यम और निम्न परिवारों में कम और पढ़े-लिखे ज्ञानवान धनवान और सभ्य समाज में ज्यादा देखने को मिल रही है । यही कारण है कि ओल्ड एज होम्स में बुजुर्गों की संख्या लगातार बढ़ रही है। पश्चात संस्कृत के बढ़ते प्रभाव से सबसे ज्यादा संस्कार का ह्रास हुआ है। जिसमें बुजुर्गों पर अत्याचार की घटनाएं भी बढ़ी है। यह देश के संस्कार पर प्रश्न चिन्ह लगाता है। नौजवानों को यह नहीं भूलना चाहिए कि जैसा उन्होंने अपने माता-पिता के साथ किया है, उनकी संतान भी उनके साथ वैसा ही करेगी। क्योंकि यह दुनिया का नियम है। देश में बुजुर्गों की दयनीय दशा को बदलने के लिए कड़े कानून के साथ संस्कारगत सोच आवश्यक है।
वैसे देश की सर्वोच्च संसद की समिति ने जो सुझाव दिए हैं वह बुजुर्गों के हित में हैं और इससे उनके जीवन स्तर में सुधार हुआ ।संसद की स्थाई समिति ने जो सुझाव दिए हैं उसको विधेयक में शामिल कर कई बदलाव किए गए हैं। जिसके बाद यह कानून और सख्त हो जाएगा। नए कानून में बुजुर्गों की देखभाल करने वाले एजेंसियों को ज्यादा जिम्मेदार बनाया गया है। जिन्हें सरकार से आर्थिक सहायता मिलती है। इससे उन पर दबाव बढ़ेगा और बुजुर्गों की देखभाल ठीक ढंग से करेंगे। समिति के सिफारिश से देश के सभी जिलों में वृद्धा आश्रम खोलने का भी प्रावधान रखा है। देश में करीब 700 जिलों में मात्र 492 जिलों में ही विद्या आश्रम है। समिति के सुझाव के बाद सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने विधेयक में एक बड़ा बदलाव कर इसमें बच्चों की परिभाषा के दायरे को बढ़ाते हुए उनकी गोद लिए बच्चे, नाती, नातिन को भी शामिल किया है बुजुर्गों को तकनीकी और वित्तीय जरूरी सुविधाएं मुहैया कराने का प्रस्ताव किया गया, जो उनके जीवन बेहतर बनाने में सहायक होगा। सरकार समिति की सिफारिशों को स्वीकार करना उचित और सराहनीय निर्णय बुजुर्गों को सुरक्षा प्रदान करने वाला विधेयक संसद में शीघ्र पेश किया जाएगा। इस विधेयक को सर्वसम्मति पारित होना चाहिए क्योंकि आज की बदली हुई संस्कृत में यह बुजुर्गों के लिए एक आधार होगा।
(इंडो नेपाल न्यूज़)

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