संपादकीय—कब्जा तालिबान का
संपादकीय—कब्जा तालिबान का
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तालिबान ने अफगानिस्तान पर अंततः कब जा कर ही लिया। यह कोई अप्रत्याशित घटना नहीं है, क्योंकि अमेरिकी नाटो सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी के बाद जिस तेजी के साथ तालिबानियों ने अपनी सक्रियता बढ़ाई उससे इसकी आशंका उत्पन्न हो गई थी कि अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबानियों का नियंत्रण हो जाएगा। या विश्व के लिए गंभीर चिंतन का विषय भी है और इससे दुनिया की राजनीति भी प्रभावित होगी ।
रविवार को काबुल पर नियंत्रण करने के बाद राष्ट्रपति अशरफ गनी ने किसी अन्य देश में शरण ले ली है और हथियारबंद तालिबानियों ने राष्ट्रपति कार्यालय को अपने कब्जे में ले लिया है । राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अपने अंतिम संदेश में स्वीकार किया है कि 20 साल लंबी जंग में तालिबान जीत गया है। खून खराबे से बचने के लिए ही मैंने देश छोड़ा है। इस समय पूरे अफगानिस्तान में भय और दहशत का माहौल है। अफगानिस्तान में बसे अन्य देश के लोग अपने देश लौटने के लिए हवाई अड्डों पर भारी संख्या में जमा हो गए हैं। काबुल में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए अमेरिकी सेना को गोली चलानी पड़ी। अमेरिका के नेतृत्व में 45 देशों ने साझा बयान जारी कर चेतावनी दी है कि सीमावर्ती प्रवेश मार्गों से बाहर जा रहे लोगों को किसी तरह का नुकसान ना पहुंचाएं । अमेरिका, ब्रिटेन सहित अनेक देश अपने नागरिकों को सुरक्षित निकालने के लिए विशेष विमान चला रहे हैं। भारत भी अपने नागरिकों को सुरक्षित निकालने के लिए आपात योजना तैयार की है, और स्थित पर पूरी तरह नजर भी रखे हुए हैं। भारत के लिए इस समय सबसे बड़ी चुनौती भारतीय लोगों को सुरक्षित वापसी है, विश्वास है कि भारत इस मिशन में अवश्य सफल होगा। वैसे भारत ने अफगानिस्तान में 500 से अधिक छोटी-बड़ी परियोजनाओं पर बड़ी धनराशि निवेश किया है। जिसमें वहां का संसद भवन भी शामिल है । आने वाले दिनों में अफगानिस्तान की नई सरकार का क्या रुख होगा इस पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है । कट्टरपंथी इस्लामिक समूह के बड़े नेता मौलाना अब्दुल गनी बरादर को अफगानिस्तान का नया राष्ट्रपति बनाने की कवायद भी शुरू हो गई है, क्द तालिबान के संस्थापक सदस्यों में एक हैं, और 2001 में पहले भी सरकार में उप रक्षा मंत्री भी थे। तालिबान के ताजा घटनाक्रम पर पूरे विश्व की नजर तो है लेकिन विश्व समुदाय को अब नई रणनीति बनानी होगी।
इंडो नेपाल न्यूज़।