संपादक की कलम से–निराशा और राहत

संपादक की कलम से--निराशा और राहत

संपादक की कलम से–निराशा और राहत
वस्तु एवं सेवा कर परिषद (जीएसटी काउंसिल) की शुक्रवार को लखनऊ में हुई बैठक में कई महंगी जीवन रक्षक दवाओं को जीएसटी के दायरे से मुक्त कर दिया गया है साथ ही कोविड, कैंसर से जुड़ी दवाओं पर जीएसटी रियायत 31 दिसंबर तक बढ़ाकर जहां एक ओर आम जनता को राहत दी गई है वहीं दूसरी ओर कोरोना वायरस के दृष्टिगत पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने के फैसले को लंबे समय तक डाल देना निराशा करने वाली बात है। यदि इसे जीएसटी के दायरे में लाया जाता तो बढ़ती महंगाई पर अंकुश लगाने में मदद मिलती। बैठक में अधिकांश राज्य पेट्रोल और डीजल को बैट से बाहर कर जीएसटी के दायरे में लाने का इस दलील के साथ विरोध किया कि यह उपयुक्त समय नहीं है। राज्य सरकारों को की दलीलें स्वार्थ से प्रेरित हैं। क्योंकि पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में वृद्धि राज्यों के राजस्व वृद्धि का सबसे बड़ा स्रोत है । महंगाई की मार से परेशान जनता को राहत देने के लिए पेट्रो पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाने के बात केंद्र और राज्य सरकारें बार-बार करती है, लेकिन जब निर्णय देने का समय आता है तब कोई न कोई बहाना बनाकर उसे टाल दिया जाता है। पिछली बार केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ईंधन सब्सिडी के भारी दबाव का ठिकरा पूर्व की सरकारों पर फोड़ा था। उन्होंने स्पष्ट किया कि पिछले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने पेट्रो पदार्थों को सस्ते दर पर बिक्री के लिए तेल कंपनियों को सीधे सब्सिडी देने के बजाय खुदरा मूल्य से हुए नुकसान की भरपाई के लिए तेल बांड् जारी किया था । जिसके ब्याज का भुगतान मौजूदा सरकार कर रही है। जिससे हमारे हाथ बंधे हुए है। इस बार कोविड-19 हवाला देखकर अनुपयुक्त समय का बहाना बनाकर पेट्रोल डीजल की जीएसटी के दायरे में लाने में टालमटोल जनता की मुसीबत बढ़ाने वाली है। मौजूदा दौर में जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की दौर मे दिनों दिन बढ़ती महंगाई से जनता त्रस्त है, इसके मूल में पेट्रोल डीजल की बढ़ती कीमत है। जिससे माल ढुलाई के भाड़े में वृद्धि से आवश्यक वस्तुओं की कीमतें मैं वृद्धि स्वभाविक है। इसका मात्र एक ही समाधान है कि पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों को वस्तु एवं सेवा कर के दायरे में लाया जाए। केंद्र और राज्य सरकारों को इस पर गंभीरता से विचार करने और सख्ती से लागू करने की जरूरत है। ताकि उपभोक्ताओं को राहत मिले
(इंडो नेपाल न्यूज़)

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