किसने रोक दी सरहद सटे गांवों की चकबंदी?

किसने रोक दी सरहद सटे गांवों की चकबंदी?

किसने रोक दी सरहद सटे गांवों की चकबंदी?
– नौतनवा तहसील छेत्र के केवल 43 गांवों की हो रही चकबंदी

आईएनन्यूज, नौतनवा (धर्मेंद्र चौधरी की रिपोर्ट)

देश आजादी के करीब ७० वर्ष बाद भी नेपाल सीमा से सटे भारतीय गांवों में भूमि स्वामित्व के आंकड़े उलझे-पुलझे से हैं। कहीं सीलिंग की भूमि का विवाद, तो कहीं थारुओं की भूमि पर कब्जा करने या फिर उसे अवैध तरीके से बिक्री करने की होड़ सी मची है।
इन सभी धांधलियों का इलाज माने जाना वाला भूमि सुधार योजना “चकबंदी” का ७० के दशक के बाद भी न आना कई सवाल खड़े कर रहा है। सबसे अहम सवाल यह कि सरहदी गांवों की चकबंदी क्यों रोकी गयी है? क्या इसमें कोई गहरा राज है?
पिछ़ले वर्ष नौतनवा तहसील छेत्र में चकबंदी की आहट हुई। तहसील छेत्र के नौतनवा व लछ्मीपुर विकास खंड़ के ग्रामीणों में आस जगी कि अब उनके स्वंय की भूमि की बिगड़ी तस्वीर दुरुस्त हो जायेगी। मगर ऐसा कुछ़ नहीं हुआ। चकबंदी लछ्मीपुर विकास खंड़ के मात्र ४३ गांवों तक सीमित रह गयी।
जिम्मेदार प्रशासनिक अमले के किसी भी अधिकारियों के पास इसका जवाब नहीं है कि नौतनवा विकास खंड़ के १०५ तथा लछ्मीपुर विकास खंड़ के करीब ४० गांवों में चकबंदी कब होगी?

बतादें कि नौतनवा तहसील छेत्र की जमीनें जमींदारी प्रथा के अधीन रहीं। वर्ष १९७३ में जमींदारी उन्मूलन अधिनियम आने के बाद यहां काफी अफरा-तफरी मची। उसी दौरान यहां पहली चकबंदी हुई। मगर उस चकबंदी में काफी त्रुटियां रहीं। जिससे सीलिंग की भूमि के प्रकरण उत्पन्न हुए और रसुखदारों व जमींदारों की मिली भगत से राजस्व विभाग को गुमराह कर काफी जमीनों पर कब्जा कर लिया गया।
समय बीता, जमीन व उनकी कीमत भी बढ़ी। जानकारों की मानें तो सरहदी गांवों में चकबंदी हो जाय तो सैकड़ों एकड़ अवैध कब्जे की भूमि का पर्दाफाश हो सकता और इसमें कई सफेदपोशों का काला चेहरा उजागर हो सकता है।
मामला अरबों -खरबों की संपत्ति का है। जिससे साफ है कि सरहदी गांवों व कस्बों में चकबंदी का आना टेढ़ी खीर साबित होगा। हो ही रहा है।
अब इस सवाल के जवाब को तलाशिये कि सरहदी गांवों की चकबंदी को वास्तव में रोक कौन रहा है?

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