,,,,तो कहां गायब हो गया अस्सी लाख रुपये का वारिस?
,,,,तो कहां गायब हो गया अस्सी लाख रुपये का वारिस?
– नौतनवा रेलवे स्टेशन पर आये कपडों के बंडल का मामला
– पुलिस को मामले से दरकिनार कर क्यों तेज हुआ कस्टम विभाग?
आईएनन्यूज, नौतनवा:
नौतनवा रेलवे स्टेशन के पार्सल घर से बरामद हुये करीब ८० लाख रुपये मूल्य के कपड़े के वारिस की तलाश में रेल व कस्टम विभाग जांच में जुट गया है। मगर जांच का रुख जिस ओर जा रहा है, अब वह सवाल खड़े कर रहा है।
पूरे वाकये को आसान शब्दों में समझने के लिये यह उदाहरण लीजिये। एक सामान्य उपयोग का सामान्य रेल पार्सल के माध्यम से नौतनवा रेलवे स्टेशन पर आता है। मगर उस कपड़े को रिसीव करने उसका वारिस नहीं आता है।
अब बताईये कि नियमत: क्या होना चाहिये?
नौतनवा रेलवे स्टेशन से कपड़ा बरामदगी का वाकया ऐसा ही है।
मगर इस घटना का रंग विवाद व संदिग्धता में तब तब्दील हो गया। जब सीमा शुल्क विभाग यानी की कस्टम ने हस्तछेप कर, कपड़े को तस्करी का मान लिया है, और उसे सीज़ करने की फिराक में है? मामला रेल व कस्टम विभाग में उलझ सा गया है। सबसे अहम बात तो यह कि कपड़ों का मालिक कौन है? और वह सामने क्यों नहीं आ रहा है?
अस्सी लाख मूल्य के कपड़े ही तो हैं। बम गोला बारूद या कोई प्रतिबंधित सामान तो है नहीं। नेपाल सीमा से आठ किलोमीटर दूर रेलवे के पार्सल में आये एक आम प्रयोग के माल को तस्करी का माल कह देना, मौखिक रूप से काफी आसान है। मगर कस्टम व रेल प्रशासन को फर्द लिखने में पसीने छूट सकते हैं।
अगर कस्टम व रेल विभाग संभावनाओं को ही आधार मान कर अपनी जांच आगे बढ़ा रहा है। तो एक संभावना आपराधिक भी बनती है।
८० लाख के कपड़े का वारिस गायब है? कहीं उसके साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गयी?
इस बिंदु पर कस्टम या रेल प्रशासन क्यों नहीं सोंच रही है? सिर्फ कपड़े को सीज अपने काबिज में करने की जद्दोजहद क्यों है?
कपड़े रेल के पार्सल घर में रहें या फिर कस्टम विभाग के माल खाने में, बात तो एक सी ही है। या कुछ़ और ?
ख़ैर, सबसे अहम बात यह है कि अस्सी लाख मूल्य के सामान का वारिस गायब है, और मामला पुलिस तक नहीं गया। अजीब है।